Monday, October 31, 2011

इलेक्ट्रानिक मीडिया भी प्रेस परिषद के दायरे में हो : काटजू



भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उन्हें सुझाव दिया है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी परिषद के दायरे में लाया जाना चाहिए और निकाय को अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए। जस्टिस काटजू ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा, ‘मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी प्रेस परिषद के दायरे में लाया जाना चाहिए, इसे मीडिया परिषद नाम दिया जाना चाहिए व इसे अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए। ऐसी शक्तियों का चरम परिस्थितियों में इस्तेमाल होगा।उन्होंने कहा कि उन्हें उनका लिखा पत्र प्राप्त हो जाने और उस पर विचार किए जानेका प्रधानमंत्री की ओर से खत मिला है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा कि उन्होंने लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से भी मुलाकात की, जिन्होंने उन्हें बताया कि इस बारे में संभवत: आम सहमतिबन जाएगी। एक सवाल के जवाब में काटजू ने कहा, ‘मैं सरकारी विज्ञापन रोकने की शक्ति चाहता हूं। अगर कोई मीडिया काफी निंदनीय तरीके से काम करे तो मैं एक निश्चित अवधि के लिए उसके लाइसेंस को निलंबित करने और दंड लगाने का अधिकार चाहता हूं।
उन्होंने कहा कि इन सभी उपायों का इस्तेमाल चरम परिस्थितियों में ही होगा। इस सवाल पर कि क्या इन उपायों से मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में नहीं पड़ेगी, उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में हर कोई जवाबदेह है। कोई भी स्वतंत्रता निरंकुश नहीं होती। हर आजादी के साथ जायज पाबंदियां भी होती हैं। मैं जवाबदेह हूं, आप भी जवाबदेह हैं। हम जनता के प्रति जवाबदेह हैं।उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि टीवी चैनलों पर होने वाली बहस उथली होती हैं और परिचर्चा के वक्ताओं के बीच कोई अनुशासन नहीं होता। उन्होंने कहा, ‘यह कोई चीखने-चिल्लाने की प्रतियोगिता नहीं है।उन्होंने तुलसीदास कृत रामचरितमानसमें लिखी एक पंक्ति भय बिन होय न प्रीतका हवाला देते हुए कहा, ‘मीडिया में कुछ भय का भाव होना चाहिए।उन्होंने कहा कि मीडिया के प्रति उनके विचार अच्छे नहीं हैं। मीडिया को जनहित में काम करना चाहिए। वे जनहित में काम नहीं कर रहे हैं। कभी-कभी वे जनविरोधी तरीके से काम करते हैं। भारतीय मीडिया भी अक्सर जनविरोधी भूमिका निभाता है। वह अक्सर जनता का ध्यान उन वास्तविक समस्याओं से हटा देता है जो बुनियादी रूप से आर्थिक समस्याएं होती हैं।काटजू ने कहा, ‘80 फीसद लोग अत्यधिक गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई और स्वास्थ्य सेवा संबंधी समस्याओं के साथ जी रहे हैं। आप (मीडिया) इन समस्याओं से उनका ध्यान बंटा देते हैं। आप फिल्मी सितारों और फैशन परेड को इस तरह पेश करते हैं, जैसे यही जनता की समस्या हो।..क्रि केट जनता के लिए नशे की तरह है। रोमन शासक कहा करते थे कि अगर आप जनता को रोटी नहीं दे सकते तो उन्हें सर्कस दीजिए। भारत में जनता को अगर आप रोटी नहीं दे सकते तो उसे क्रि केट दीजिए।
काटजू ने कहा कि जहां कहीं भी बम विस्फोट होता है, कुछ ही घंटों के भीतर हर चैनल यह दिखाने लग जाता है कि उसे इंडियन मुजाहिदीन या जैश-ए-मोहम्मद या हरकत-उल-अंसार या अन्य किसी मुस्लिम नाम से ई-मेल या एसएमएस आया है, जिसमें जिम्मेदारी ली गई है। आप देख सकते हैं कि कोई भी शरारती व्यक्ति ई-मेल या एसएमएस भेज सकता है लेकिन उसे टीवी चैनल पर दिखाकर आप कपटपूण तरीके से यह संदेश दे रहे हैं कि सभी मुस्लिम आतंकवादी हैं और बम फेंकने वाले हैं और आप मुस्लिमों को बुरा बता रहे हैं। सभी समुदायों में 99 फीसदी लोग अच्छे होते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत सामंती कृषि समाज से आधुनिक औद्योगिक समाज बनने के परिवर्तनशील दौर में है। यह इतिहास का सबसे दर्दनाक और दुखदायी दौर है। जब यूरोप इस दौर से गुजर रहा था तो वहां मीडिया ने बड़ी भूमिका अदा की थी। यूरोप में रोउसेयू, वाल्टेयर, थॉमस पेन, जूनियस, डीडेरॉट जैसे महान लेखकों ने मदद की। ..यहां मीडिया अंधविास और ज्योतिष को बढ़ावा देता है। देश में 90 फीसद लोग मानसिक रूप से पिछड़े हुए और जातिवाद, साम्प्रदायिकता व अंधविास आदि में डूबे हुए हैं।काटजू ने कहा कि जनता को आधुनिक वैज्ञानिक विचारों की जरूरत है, लेकिन इसके उलट हो रहा है। उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा, ‘एक टीवी चैनल पर लगातार दो दिन हाईकोर्ट के एक जज की तस्वीर को एक बदमाश अपराधी की तस्वीर के साथ दिखाया जाता रहा।