Thursday, December 30, 2010

इस ठगी से कौन बचाएगा

अभी हाल ही में चिकित्सकों द्वारा यह बताया गया है कि रूसी कोई बीमारी नहीं है और इसकी उत्पत्ति के संबंध में भी कोई ठोस जानकारी नहीं है। जाहिर है, शैंपू निर्माता न केवल उसे हटाने के नाम पर लोगों को ठग रहे हैं, बल्कि उनकी भावनाओं से भी खेल रहे हैं। ऐसा केवल एक उत्पाद के साथ नहीं है। उपभोक्ताओं को तो आए दिन तमाम असरहीन उत्पादों के झूठे और भ्रामक प्रचारों से ठगा जा रहा है। ये दावे विज्ञापनों और संचार माध्यमों के जरिये किए जा रहे हैं। जाहिर है, यह तथ्य सभी के संज्ञान में है। लेकिन हमारे यहां ऐसी कोई जिम्मेदार संस्था नहीं है, जो इन झूठे दावों को खारिज कर उपभोक्ताओं को सजग और सुरक्षित कर सके या प्रचारित दावों के अनुरूप माल की गुणवत्ता न होने पर उत्पादकों के खिलाफ कार्रवाई करे।
बात सिर्फ दावों को खारिज करने से नहीं बनेगी। जब उत्पाद सामग्री दावे के अनुसार नहीं हो, तो मामला धोखाधड़ी और ठगी का बनना चाहिए। वैसे तो यह अपराध ठगी से भी बढ़कर हैं, क्योंकि इन्हें प्रचार माध्यमों से और अधिकृत उत्पादकों द्वारा बेचा जा रहा है। दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के जितने भ्रामक दावे किए जाते हैं, उतने शायद ही किसी क्षेत्र में किए गए हों।
लीवर को स्वस्थ रखने के लिए बाजार में तमाम तरह की दवाएं मौजूद हैं, जबकि चिकित्सा विज्ञान मानता है कि लीवर को स्वस्थ रखने में उचित खानपान का हाथ होता है, न कि किसी दवा का। इसके संक्रमण की दशा में विश्राम और वसा मुक्त खान-पान ही निरोगी बनाता है। क्या नियंत्रक संस्थाएं बता सकती हैं कि ऐसी कोई आयुर्वेदिक या होमियोपैथी दवा का आविष्कार हुआ है, जो सिर पर बाल उगा दे या पुरुषों के जननेंद्रियों या स्त्रियों के वक्षों का आकार बढ़ा दे? पर ऐसे दावे प्रतिदिन विज्ञापनों में देखने को मिलते हैं। पौरुष शक्ति बढ़ाने, कैंसर का शर्तिया इलाज करने या चंद दिनों में गोरा बनाने या झुर्रियां हटाने के दावे कितने सही हैं, इस बारे में कभी किसी सरकारी संस्था ने कुछ नहीं बताया। सौंदर्य की चाह में समाज का एक बड़ा तबका उलजलूल इलाजों के नाम पर ठगा जा रहा है। इसी तरह शारीरिक लंबाई बढ़ाने की दवाएं भी कोई फायदा नहीं करतीं, फिर भी विज्ञापनों के जरिये उपभोक्ताओं को ठगा जाता है। चिकित्साशास्त्र के अनुसार, 18 से 20 वर्ष की उम्र तक ही किसी व्यक्ति की लंबाई बढ़ती है, वह भी किसी दवा से नहीं। ऋषिकेश का एक डॉक्टर दशकों तक आयुर्वेदिक दवा के नाम पर मिरगी रोग ठीक करने का दावा करता रहा। मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ अपने फोटो दिखाकर वह मरीजों को प्रभावित करता रहा। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की शिकायत के बाद जब हकीकत सामने आई, तो उसे जेल की हवा खानी पड़ी।
दरअसल ऐसे दावों-प्रतिदावों की जांच करने वाला हमारा तंत्र नकारा है। यहां कोई भी कुछ भी दावा कर सकता है और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। अब तो रुद्राक्ष कवच से भी दमा, कैंसर और रक्तचाप के इलाज का दावा किया जा रहा है।
योग स्वास्थ्य के लिए निस्संदेह लाभदायक है। हम नियमित योग कर स्वस्थ रह सकते हैं। परंतु योग से टीबी या कैंसर जैसी बीमारियों को ठीक करने का दावा कोरी बकवास के अलावा कुछ नहीं है।
सवाल उठता है कि तमाम विज्ञापनों की भूल-भुलैया में ठगी जाने वाली जनता का रक्षक कौन है? चिकित्सा विभाग में हमने ऐसा कोई तंत्र विकसित किया है, जो इन तमाम झूठे दावों की असलियत जांचे, परखे और झूठा दावा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सके? अगर नहीं, तो आम जनता को ठगे जाने या इन नीम-हकीमों, तांत्रिकों के जाल में फंसने से कौन बचाएगा? क्या हम उन तमाम निरक्षर लोगों को उनके हाल पर छोड़ देंगे? कहने को तो कहा जा सकता है कि भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ औषधि एवं झाड़-फूंक उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम प्रभावी है। इसके लिए भारतीय विज्ञापन मानक परिषद और राज्य स्वास्थ्य विभाग से भी शिकायत की जा सकती है, पर क्या गांव के करोड़ों अनपढ़ उपभोक्ता ऐसे उत्पादों के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं? हरगिज नहीं, क्योंकि उनमें जागरूकता का अभाव है और ऐसी संस्थाएं उनकी पहुंच से दूर हैं। ऐसे में नियंत्रक संस्थाओं की ही जिम्मेदारी बनती है कि वे झूठे विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई करें और इन पर रोक लगाएं।

Tuesday, December 28, 2010

चैनल का मालिक ठगी के आरोप में दबोचा

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने एस वन न्यूज चैनल व सीनियर बिल्डर लिमिटेड के मालिक विजय दीक्षित को ठगी के आरोप में गिरफ्तार किया है। उस पर इंवेस्टमेंट के नाम पर करोड़ों रुपये ठगने के दर्जन कई मामले दर्ज हैं। दीक्षित के विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी कर पुलिस ने कई संदिग्ध दस्तावेज भी बरामद किया है। शाखा पुलिस उनकी अरबों रुपये की चल व अचल संपत्ति का ब्यौरा जुटाने में जुट गई है। शाखा के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक दीक्षित के खिलाफ कई लोगों ने शॉपिंग मॉल में दुकानों व अन्य निर्माण में इंवेस्टमेंट के नाम पर करोड़ों रुपये ठगी करने की शिकायत दर्ज कराई थी। इनके खिलाफ दक्षिण जिला के आरकेपुरम थाने में दो व डिफेंस कालोनी में एक मामला दर्ज है। आरके पुरम में एक शिकायतकर्ता ने करीब एक करोड़ रुपये की ठगी का मामला दर्ज कराया है। इन मामलों में दिल्ली पुलिस कई महीने से दीक्षित की तलाश कर रही थी।

Sunday, December 26, 2010

ब्लैकमेलिंग के लिए ही चला रहे थे न्यूज चैनल

पुलिस ने दबोचे चार फर्जी पत्रकार नरेला में चलाते थे क्राइम कंट्रोल नाम से चैनल
पूर्वी दिल्ली (एसएनबी)। अवैध वसूली करने वाले चार फर्जी पत्रकारों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इनमें दो महिलाएं भी शामिल हैं। इनकी पहचान सिमरन गुप्ता, सोनू कुमार, राजन और ममता के रूप में हुई। इनके पास से कई टीवी चैनलों के फर्जी पहचान पत्र बरामद किए गए हैं। इस गिरोह की मास्टर माइंड सरगना सिमरन गुप्ता है, जो अपने साथियों के साथ लोगों को ब्लैकमेल करती थी। नरेला में ये लोग क्राइम कंट्रोल नामक टीवी चैनल चला रहे थे और इसी के माध्यम से लोगों को ब्लैकमेल करते थे। पुलिस के मुताबिक सीमापुरी इलाके में कासिम नामक व्यक्ति ने इन चारों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उसका कहना था कि उसके मकान को अवैध बताकर और उसे फंसाने की धमकी देकर टीवी चैनल के कुछ पत्रकारों ने उससे 10 हजार रुपए वसूले हैं। पुलिस के अनुसार सभी आरोपित कासिम से बकाया 15 हजार रुपए लेने आए थे और इसी दौरान उन्हें धर-दबोचा गया। पूछताछ में पता लगा है कि ये चारों टीवी चैनलकर्मी और फर्जी पत्रकार बनकर अवैध निर्माण का डर दिखाकर लोगों को ब्लैकमेल करते थे। इनके पास से कुछ टीवी चैनलों की आई कार्ड, करीब 50- 60 फर्जी पहचान पत्र, कुछ महत्वपूर्ण कागजात, कैमरे, वीडियो कैमरा, माइक्रोफोन, पांच वायरलैस और मोबाइल फोन बरामद किए हैं। पुलिस के मुताबिक सिमरन गुप्ता से जामिया से पत्रकारिता का कोर्स करने के दस्तावेज मिले हैं। पुलिस के अनुसार सभी आरोपित दिल्ली के रहने वाले हैं।

तेंदुलकर की पत्नी दिल्ली रवाना

जौलीग्रांट। मसूरी में लगभग एक सप्ताह छुट्टियां बिताने के बाद सचिन तेंदुलकर की पत्नी अंजलि तेंदुलकर बच्चों सहित दिल्ली रवाना हो गईं। सचिन के परिवार सहित उनके साथ जाने वाले कुल सात लोगों को सुबह किंगफिशर के विमान से जाना था, लेकिन दिल्ली में खराब मौसम के कारण अंजलि को जौलीग्रांट में लगभग पांच घंटे इंतजार करना पड़ा। 

Monday, December 20, 2010

विज्ञापनों के जरिए भ्रष्टाचार से जंग

जागरण ब्यूरो, पटना बिहार में भ्रष्टाचार उन्मूलन की जंग में अब स्लोगन के तीर चलाए जा रहे हैं। चाय की चुस्कियों के साथ हर सुबह तरह-तरह के नारे लोगों को नया विजन दे रहे हैं। नीतीश सरकार ने इन नारों को हर सुबह लोगों को बिना किसी खास तैयारी के अनोखे अंदाज में पेश करने का तरीका निकाल लिया है। हर सरकारी विज्ञापन (इश्तेहार) के नीचे के बार्डर में इन नारों को अनिवार्य रूप से लिखा और प्रकाशित कराया जा रहा है। इन विज्ञापनों का सीधा संबंध सरकारी कर्मियों और आम लोगों से है। नारे कई तरह के हैं। जिस समय सरकार ने विजिलेंस ब्यूरो को सक्रिय किया था उस वक्त आम तौर पर यह नारा ज्यादा चलन में था कि घूस लेना और देना अपराध है। पर इन दिनों नए-नए नारे चलन में आ गए हैं। अब तो धर्म और इंसानियत तक की दुहाई दी जा रही है। एक नारे पर नजर डालिए सरकारी सेवा जनसेवा का माध्यम है। धर्म-इंसान की तरह इसे भी बेदाग बनाए रखें। नसीहत के साथ-साथ चेतावनी वाले सरकारी नारे भी खूब चलन में हैं। इस नारे को देखिये-घूस के बल पर खड़ा मकान कभी भी ताश के महल सा ढेर हो सकता है। चेतावनी का यह अंदाज कुछ इस तरह से प्रासंगिक है कि सरकार, घूसखोरी के पैसे से बनी अट्टालिकाएं जब्त कर वहां स्कूल खोलेगी। भ्रष्टाचार उन्मूलन की जंग में जो नए सरकारी नारे चलन में हैं, उनमें आम लोगों के लिए भी तमाम हिदायतें हैं। मसलन, लोगों से यह कहा जा रहा है कि पैसे के बल पर काम कराना अपराध है, काम सही है तो मुफ्त होगा। हिदायतों के साथ- साथ जागरूकता वाले नारे भी हैं। ये कुछ इस तरह से हैं-याद रखें बिना प्राप्ति रसीद के लिया-दिया गया धन घूस है। कुछ दिनों पहले तक लोगों को सचेत करते हुए यह नारा चलन में था-भ्रष्टाचारी के दबाव में मत रहें, निगरानी विभाग से मिलकर कहें। घूसखोरों को सावधान करने वाले नारे भी हैं-घूसखोर का क्या जीना, रात में नींद न दिन में चैना। यह भी बताया जा रहा कि घूसखोर का क्या कहना, जेल जाना और पानी भरना। रिश्वतखोरों को संत वचन भी परोसे जा रहे हैं-वेतन भत्ता की चादर हो जितनी, फैला पांव लालसा की उतनी। मनोचिकित्सकों की राय में निश्चित तौर पर इन नारों का असर होगा। उल्लेखनीय है कि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार को भ्रष्टाचार की बीमारी से निजात दिलाने के लिए नया कानून बनाया है। इसके तहत सरकार न सिर्फ भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार कर सकती है बल्कि पद का दुरुपयोग कर अवैध रूप से एकत्र की गई सारी संपत्ति तक को जब्त करने सकती है। हाल ही में एक अफसर पर ऐसी कार्रवाई की गई है।

Sunday, December 19, 2010

आरटीआइ की धार कम करने की तैयारी में

सूचना का अधिकार (आरटीआइ) आवेदनों के संबंध में कार्मिक विभाग के सुझावों को अगर स्वीकार कर लिया गया तो ऐसे आवेदनों को 250 शब्दों तथा एक विषय तक सीमित करना होगा। आरटीआइ नियमों में प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार नोडल निकाय कार्मिक विभाग ने कहा है कि ऐसे आवेदनों में 250 शब्दों की सीमा होनी चाहिए। इनमें अधिकारी और आवेदक के पते शामिल नहीं होंगे। इसके अलावा आवेदन में सिर्फ एक ही विषय होगा। सूचना मुहैया कराने के लिए किसी उपकरण के इस्तेमाल पर प्राधिकार की ओर से खर्च जाने वाली वास्तविक राशि भी आवेदक को देनी होगी। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने प्रस्तावित परिवर्तन पर आम लोगों की प्रतिक्रिया मांगी है। प्रतिक्रियाएं 27 दिसंबर तक दी जा सकेंगे। इसके लिए ईमेल आईडी भी जारी की गई है। इन नियमों से आरटीआइ आवेदकों में नाराजगी है। उनका कहना है कि कम पढ़े लिखे लोगों को इससे सुविधा नहीं होगी। कामोडोर (अवकाशप्राप्त) लोकेश बत्रा के अनुसार प्रतिक्रियाएं देने के लिए काफी कम समय दिया गया है और उन्हीं लोगों को मौका मिलेगा जो इंटरनेट का उपयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों के उन लोगों को अपने विचार व्यक्त करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा जिनकी पहुंच इंटरनेट तक नहीं है। एक अन्य आरटीआइ आवेदक सुभाष अग्रवाल ने कहा कि शब्दों की सीमा 250 तक तय करने से सूचना के अधिकार में बाधा आएगी। उन्होंने कहा कि आवेदनों में शब्दों की सीमा तय करने की कोई जरूरत नहीं थी।

Saturday, December 18, 2010

मीडिया की पड़ताल

खबरों के प्रसार की दृष्टि से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तेज और तात्कालिक बहस छेड़ने में काफी आगे निकल आया है, लेकिन गंभीर प्रभाव की दृष्टि से प्रिंट मीडिया आज भी जनमानस पर अपनी गहरी पैठ रखता है। फिर वे कौन से कारण हैं कि आज मीडिया की कार्यशैली और उसके व्यवहार को लेकर सबसे ज्यादा आलोचना का सामना मीडिया को ही करना पड़ रहा है। चौथे खंभे पर लगातार प्रहार हो रहे हैं। समाज का आइना कहे जाने वाले मीडिया को अब अपने ही आइने में शक्ल को पहचानना कठिन हो रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्र्वविद्यालय, भोपाल में जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी की नई पुस्तक मीडिया- नया दौर नई चुनौतियां इन सुलगते सवालों के बीच बहस खड़ी करने का नया हौसला है। संजय द्विवेदी अपनी लेखनी के जरिए ज्वलंत मुद्दों पर गंभीर विमर्श लगातार करते रहते हैं। लेखक और पत्रकार होने के नाते उनका चिंतन अपने आसपास के वातावरण के प्रति काफी चौकन्ना रहता है। पुस्तक में लंबे समय से मीडिया पर उठ रहे सवालों का जवाब तलाशने की जद्दोजहद हैं। कुछ सवाल खुद भी खड़े करते हैं और उस पर बहस के लिए मंच भी प्रदान करते हैं। पुस्तक में कुल सत्ताइस लेखों को क्रमबद्ध किया गया हैं जिनमें उनका आत्मकथ्य भी शामिल है। पहले क्रम में लेखक ने नई प्रौद्योगिकी, साहित्य और मीडिया के अंर्तसंबंधों को रेखांकित किया है। आतंकवाद, भारतीय लोकतंत्र और रिपोर्टिंग कालिख पोत ली हमने अपने मुंह पर, मीडिया की हिंदी, पानीदार समाज की जरुरत, खुद को तलाशता जनमाध्यम जैसे लेखों के माध्यम से लेखक ने नए सिरे से तफ्तीश करते हुए समस्याओं को अलग अंदाज में रखने की कोशिश की है। बाजारवादी मीडिया के खतरों और मीडिया के बिगड़ते स्वरुप पर तीखा प्रहार है। लेखों में एक्सक्लूसिव और ब्रेकिंग के बीच की खबरों के बीच कराहते मीडिया की तड़फ दिखाने का प्रयास भी है। मीडिया के नारी संवेदनाओं को लेकर गहरी चिंता भी जताई गई है। पुस्तक में मीडिया शिक्षा को लेकर भी कई सवाल हैं। मीडिया के शिक्षण और प्रशिक्षण को लेकर देश भर कई संस्थानों ने अपने केंद्र खोले हैं। मीडिया में आने वाली नई पीढ़ी के पास तकनीकी ज्ञान तो है, लेकिन उसके उद्देश्यों को लेकर सोच का अभाव है। अखबारों की बैचेनी के बीच उसके घटते प्रभाव को लेकर भी पुस्तक में गहरा विमर्श देखने को मिलता है। विज्ञापन की तर्ज पर जो बिकेगा, वही टिकेगा जैसा कटाक्ष भी लेखक ने किया है। वहीं थोड़ी सी आशा मीडिया से रखते हैं कि जब तंत्र में भरोसा न रहे वहां हम मीडिया से ही उम्मीदें पाल सकते हैं। अब समय बदल रहा है इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और बिजनेस भास्कर का हिंदी में प्रकाशन यह साबित करता है कि हिंदी क्षेत्र में आर्थिक पत्रकारिता का नया युग प्रारंभ हो रहा है। हिंदी क्षेत्र में एक स्वस्थ औद्योगिक वातावरण, व्यावसायिक विमर्श, प्रशासनिक सहकार और उपभोक्ता जागृति की संभावनाएं साफ नजर आ रही हैं। हिंदी बाजार में मीडिया वार की बात की गई है। पुस्तक में पत्रकारिता की संस्कारभूमि छत्तीसगढ़ के प्रभाव को काफी महत्वपूर्ण करार दिया है। अपने आत्मकथ्य मुसाफिर हूं यारों के माध्यम से संजय उन पलों को नहीं भूल पाते हैं जहां उनकी पत्रकारिता परवान चढ़ी है। वह अपने दोस्तों, प्रेरक महापुरुषों और मार्गदर्शक पत्रकारों की सराहना करने से नहीं चूकते हैं जिनके संग-संग छत्तीसगढ़ में उन्होंने अपनी कलम और अकादमिक गुणों को निखारने का काम किया है।

Monday, December 6, 2010

प्रथम प्रवक्ता को छोड़ आगे बढे राय साहब

वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय के  बारे में कहा जाता है कि वे किसी भी चौखटे के भीतर काम करना पसंद नहीं करते . उनका स्वभाव  हमेशा चौखटों को तोड़कर आगे बढ़ने वाला रहा है . उन्होंने इस बात को एक बार फिर साबित किया है . खबर है कि जिस प्रथम प्रवक्ता को राय साहब ने अपनी कल्पना से गढ़ा था उसको छोड़कर वे आगे बढ़ गए है .

.गौरतलब है की राय साहब अपने तेवरदार व्यक्तित्व और पत्रकारिता के लिये जाने जाते है . हाल में उन्होंने पेड न्यूज़ को लेकर प्रथम प्रवक्ता में एक अभियान चलाया था . इसी तरह २ जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बारे में  सबसे पहले तथ्यपरक खबरें प्रथम प्रवक्ता में प्रकाशित हुई थी . रामबहादुर राय ने करीब पांच साल पहले बतौर संपादक प्रथम प्रवक्ता पत्रिका का कार्यभार संभाला था. इन पांच सालों में पत्रिका ने जनकेन्द्रित पत्रकारिता के  नये  मानक तैयार किये  थे  .
फिलहाल समाजकेंद्रित पत्रकारिता करने वालों की नजर राय साहब के अगले पड़ाव पर टिकी है