Sunday, May 22, 2011

प्रशासन की पोल खोलने पर पत्रकार को जेल


26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के दौरान पाकिस्तानी आतंकियों से मुकाबला कर रहे मुंबई पुलिस के कई जवानों की राइफलें जाम हो गई थीं। जिन कारणों से ये राइफलें जाम हुईं, उन्हें उजागर करने वाले अंग्रेजी दैनिक मिड-डे के पत्रकार को पिछले दो दिनों से हवालात की हवा खानी पड़ रही है। जागरण समूह के मुंबई से प्रकाशित हो रहे दैनिक अखबार मिड-डे के वरिष्ठ संवाददाता टी.के. द्विवेदी अकेला ने करीब साल भर पहले मुंबई आरपीएफ के शस्त्रागार की एक तस्वीर के साथ खबर प्रकाशित की थी। इस तस्वीर में वहां रखे हथियारों पर बरसात का पानी गिरता दिख रहा था। इस खबर के बाद आरपीएफ के कुछ अधिकारियों पर गाज गिरी थी और विभाग ने अपनी कमी दुरुस्त करते हुए शस्त्रागार की मरम्मत भी करा ली थी। लेकिन, इस घटना के करीब 6 माह बाद राज्य रेल पुलिस (जीआरपी) अपनी खुन्नस निकालते हुए मंगलवार रात मिड-डे कार्यालय से अकेला को पूछताछ के बहाने अपने साथ ले गई और थाने पहुंचने के बाद गोपनीयता उल्लंघन कानून के तहत उनकी गिरफ्तारी दिखा दी। अकेला की गिरफ्तारी जिस प्राथमिकी के आधार पर की गई है, उसमें उनके नाम का उल्लेख कहीं नहीं है। प्राथमिकी में सिर्फ अनधिकृत प्रवेश का आरोप लगाया गया है। यह आरोप भी किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी द्वारा नहीं बल्कि मुंबई सीएसटी क्षेत्र में हॉकर्स यूनियन चलाने वाले एक व्यक्ति प्रदीप सोंथालिया की शिकायत के आधार पर लगाया गया है। अकेला की गिरफ्तारी से मुंबई के पत्रकार जगत में रोष है। गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए गुरुवार को मुंबई के सभी पत्रकार संगठनों ने मुंबई मराठी पत्रकार संघ में विरोध सभा कर मुंबई प्रेस क्लब से मंत्रालय तक पैदल मार्च किया। पत्रकारों का एक दल राज्य के गृह मंत्री आरआर पाटिल से भी मिलने गया। पाटिल से उन अधिकारियों को तुरंत निलंबित करने की मांग की गई, जिन्होंने अकेला पर बदले की भावना से गोपनीयता उल्लंघन कानून के तहत मामला दर्ज कर उन्हें प्रताडि़त किया। अकेला ने करीब साल भर पहले मुंबई आरपीएफ के शस्त्रागार की तस्वीर के साथ एक खबर प्रकाशित की थी। इस तस्वीर में शस्त्रागार में रखे असलहों पर बरसात का पानी गिरता दिखाई दे रहा था। यह तस्वीर प्रकाशित होने के बाद आरपीएफ के कुछ अधिकारियों पर गाज गिरी थी।


Sunday, May 15, 2011

नया देहशास्त्र


एचटी सिटी के 14 मई के संस्करण में एमटीवी के ‘रोडीज’ नामक रीयलिटी शो कार्यक्रम पर एक सचित्र फीचर छपा है। उसने रोडीज के नए कपड़ा उतार स्टिपटीज शो के बारे में विस्तार से बताया है।’ प्रसारण के उदारीकरण के दौर में एमटीवी जब भारत में आया तो वह अंग्रेजी गानों का चैनल बना। उसे जल्दी ही महसूस हुआ कि भारत के दर्शक को अपनी ओर सिर्फ अंग्रेजी गानों से नहंीं खींचा जा सकता सो उसने बालीवुडीय गानों को दिखाना शुरू किया। अरसे तक ऐसा होता रहा। उसके बाद एमटीवी अपने असली स्वभाव पर आ गया। इन दिनों वह रोडीज में स्टिपटीज कल्चर को शह देने में लगा है। जिस फीचर का हमने शुरू में जिक्र किया है वह इस संदर्भ में कुछ चौंकाने वाली बातें बताता है, जिनसे यह साबित होता है कि एमटीवी अब अंग्रेजी हिंदी गानों से कहंीं ज्यादा एडवेंचर गेम्स और स्टिपटीज पर जोर देने लगा है। यह नया देहशास्त्र है, जिसका लक्ष्य देह के भोग की नई संस्कृति बनाना है। नई जीवन शैली का निर्माण करना है। एमटीवी पर आने वाले रोडीजरीयलिटी शो नई युवा पीढ़ी को नई जीवन शैली के पक्ष में फुसलाता है। नए पब्लिक स्कूली युवा-युवतियों को अपने कार्यक्रम में नायक-नायिका बनाता है। घर से बाहर सुनसान सड़कों पर आजाद बाइक सैर सपाटों और एडवेंचरों के बारे में बताता है। यह एडवेंचर के लिए मचलने वाले अकेले लड़के-लड़कियों के आपस में कनेक्ट करने, एक दूसरे को बरतने और सहने; जिसमें ढेर सारी बदतमीजियां भी शामिल रहती हैं, के आजाद तौर-तरीकों को नए जीवन मूल्य की तरह सामने रखता है। इस क्रम में एक नया एडवेंचर जोड़ा जाने लगा है-ऐन खुली सड़क पर कपड़े उतार कर नंगे होने की होड़ा-होड़ी ! एमटीवी रोडीज का यह नया आइटम है। ‘पुरुष देह’ का प्रदर्शन है। रोडीज में लड़के-लड़कियों का खुला संग-साथ, खुला व्यवहार दिखाने वाले कार्यक्रम भी आते रहे हैं लेकिन यह ‘मर्द कपड़ा उतार’ कार्यक्रम बिल्कुल नया है। नए मिडिल क्लास को इस सब में अपनी ‘लोअर मिडिल क्लासी झिझक को मिटाने की, नई ‘आउटिंग’ या ‘ऑफ साइड’ में रहने-सहने की ट्रेनिंग दी जाती है। घर बैठे दर्शक को यह सीख दी जाती है कि तुम अगर यह सब नहीं कर सकते तो तुम पिछड़े हुए हो। किसी काबिल नहीं हो। नए लड़के- लड़कियों की आजाद जिदंगी का मतलब है हालीवुडीय शो ‘यंग एंड रेस्टलेस या ‘फास्ट एंड पफ्यूरियस’ वाली जीवनशैली! नए किस्म की मोटरसाइकिलों पर तेजी से फर्राटे भरते बाइकर्स की जिदंगी हल्की तेज फर्राटेदार यूज एंड थ्रोवाली जिदंगी पूरा थिल्र देती है। उसमें मजा है। वह निर्बध है। महानगरों में ही नहीं मझोले और छोटे नगरों में भी ऐसे युवा आजकल नजर आने लगे हैं जो हर हाल में रोडीज की जिदंगी जीना चाहते हैं। रोडीज का ‘स्टिपटीज शो’ इस क्रम में नया आइटम है। यह सबके सामने एक के बाद एक कपड़े उतारने का शो है जिसे रोडीज का ‘टास्क’ कहा जाता है। इस आइटम की पहली बड़ी खबर तब बनी जब सन दो हजार नौ में पुणो में रोडीज के एक शो में ‘स्पर्धियों’ को ‘कपड़ा उतारू’ (स्टिपटीज) का टास्क दिया गया था। इसे रोडीज शो में खूब प्रचारित किया गया था। इस चक्कर में बहुत सारे लड़के-लड़की आ गए थे लेकिन कहते हैं कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोगों के हल्ले ने रंग में भंग पैदा कर दिया। विवाद हुआ। इसी तरह रोडीज से सूफी मल्होत्रा नामक एक स्पर्धी की टांग के टूटने से विवाद भी पैदा हुआ जिसने बताया कि हिस्सा लेने वालों को एडवेंचर गेम्स कराए जाते हैं लेकिन उनकी हिफाजत का कोई खास बंदोबस्त नहीं होता। युवक-युवती रोडीज के मुफ्त के टीवी कवरेज के, आवारागीरी के, मौज-मजे के चक्कर में आ जाते हैं और दुर्घटनाग्रस्त होते रहते हैं। आपस में गाली-गलौज देना, गंदी से गंदी गालियों का उदारतापूर्वक आदान-प्रदान करना ‘नई मिडिल क्लासी’ कल्चर का नया आइटम है जिसे ‘रोडीज’ ने नए सिरे से बनाया है और युवा जीवन शैली की तरह प्रचारित किया है। लड़कियों से कहा जाता है कि वे मोटी मांसल गालियां दें ताकि कार्यक्रम की टीआरपी बढ़े। ऐसा ही आरोप इस कार्यक्रम में हिस्सा लेनी वाली लड़की गुरमीत कौर ने लगाए थे। ऐसे उदाहरण अक्सर खबर बनते रहते हैं। इस क्रम में जिसे लाइव शो ने सबसे ज्यादा चौंकाया है, वह ब्राजील में आयोजित किया गया। यह गत शनिवार की बात है। इस शो में तीन युवकों ने भाग लिया। इन्हें सबके सामने अपने कपड़े उतारने थे। इस काम के एक-एक लाख रुपए मिलने थे। आमंत्रित लोगों के सामने शो हुआ। तीनों ने स्टिपटीज शैली में अपने-अपने कपड़े उतारे। इसमें शामिल एक युवा सूरज ने एक लाख लेने से इनकार कर दिया। बाकी दो ने पैसे लिए लेकिन उनके हाव-भाव से यही झलकता रहा कि इस सबसे वे कुछ परेशान ही हैं। एक चित्रकार ने उनके नंगी देह के रेखाचित्र बनाए। आमंत्रित दर्शकों ने अपने अपने मोबाइलों पर उनकी फिल्में बनाईं। इस सबमें उन्हें खूब फजीहत महसूस हुई। दर्शकों ने उन पर फब्तियां कसीं। सुचित नामक एक हिस्सेदार को चिंता रही थी कि खबर लगने पर उसके माता-पिता क्या सोचेंगें? अगर कहीं ये वीडियो यूट्यूब पर पहुंच गए तो क्या होगा? भारतीय मिडिल क्लास के युवाओें के जगत को हजार तरीकों से खोला जा रहा है। युवा मेल स्टिपटीज इसी सांस्कृतिक उद्यम का हिस्सा है। अगला कदम मेल प्रोस्टीट्यूट मॉडल का निर्माण हो सकता है। विकासशील देश में टीवी कार्यक्रमों के ऐसे मॉडल विकासमूलक समाज की जरूरतों से मेल नहीं खाते लेकिन मनोरंजन चैनलों का अब तक का इतिहास बताता है कि उसे समाज की और उसके व्यक्ति की विकासमूलक सांस्कृतिक जरूरतों से कोई मतलब नहीं। कोई वास्ता नहीं। ऐसे तमाम कार्यक्रम विकास के एजेंडे और मनोरंजन के बीच बढ़ते अंतर्विरोधों के उदाहरण हैं। पश्चिम में एक जमाने में ‘फीमेल स्टिपटीज शो’ चले। इन दिनों मेल स्टिपटीज टीवी का नया देहशास्त्र है।‘जो वहां है सो यहां है’-टीवी की नकलची कल्चर का पुराना मुहावरा है। इसे दोहराया जा रहा है।

Sunday, May 1, 2011

उत्तर-उपनिवेशवाद है यह तो


इसे मीडिया-उपनिवेशवाद तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना कहा जा सकता है कि उसे फिरंगियों की जूठी पत्तल को परोसने और चाटने-चटाने का शौक खूब है। शायद यही मीडिया का उत्तर उपनिवेशवाद हो। यह बीमारी अपने अंग्रेजी छाप मीडिया में ज्यादा है। उनके हिंदी चैनलों पर भी इस बीमारी की छाया पड़ जाया करती है। जिस राजशाही को नेपाल में गिरते दिखाते हमारे मीडिया को जनतांत्रिक किस्म की प्रसन्न्ता होती दिखती है लेकिन ब्रिटेन की राजशाही को यथावत दिखाते वक्त वह राजशाही की व्यर्थता को याद नहीं कर पाता। विलियम और केट की शादी का लाइव कवरेज इस संदर्भ में उदाहरण की तरह देखा जा सकता है। यूरोप के हर देश के हर खबर चैनल के लिए यह शादी एक ऐसी 'महान घटना','बरस की शादी' और 'दशक की सबसे बड़ी शादी' रही जिसके एक-एक चरण को लगातार दिखाना एक बड़ा काम रहा। अमेरिकी सीएनएन तो शादी का ऐसा दीवाना रहा कि एक पल को अपने कैमरे न हटा सका। उस दिन उसके लिए दिन भर में दुनिया में और कुछ हुआ ही नहीं जर्मन टीवी डयूचे वेले के लिए भी यह शादी ऐसा ही अवसर रही। लेमन टीवी के लिए रही। फ्रेंच टीवी चैनलों के लिए यह लगातार दिखाने योग्य घटना रही। स्काई न्यूज और बीबीसी र्वल्ड इसे इस कदर दिखाने में दत्तचित्त रहे कि उनके लिए कोई पांच घ्ांटे दुनिया में कुछ और हुआ ही नहीं। अल जजीरा ने भी दिखाने के मामले में इनको टक्कर दी। लंदन के सबसे बड़ र्चच में शादी की रस्में पूरी हो रही थीं। उसमें सबसे बड़े बिशप ने यह जरूर कहा कि यह 'शादी दुनिया भर में देखी जा रही है'। आदरणीय बिशप तक मीडिया की ऐसी जोरदार उपस्थिति का नोट लेते पाए गए।र्चच से लेकर बकिंघम पैलेस के बाहर का बीस मिनट का बग्घी जुलूस को देखने वालों की संख्या बेशुमार रही। हाइड पार्क में लाखों की भीड़ रही। कोई पैंतालीस मिनट के बाद विलियम और केट को बकिंघम पैलेस के बालकनी में सबको दर्शन देने आना था। ये पैंतालीस मिनट उसी तरह से सब चैनलों ने गुजारे जिस तरह अपने चैनल गुजारा करते हैं। आए लेगों से बातचीत करते रहे। कौन कहां से आया है, उसके लिए इस शादी का क्या महत्त्व है? सब बताते रहे। लोग बाल-बच्चों समेत इस विवाह को देखने जाने कहां-कहां से आए थे। इससे पहले की रात के प्राइम टाइम पर स्काई चैनल ने कुछ रेडीकल लाइन लेने की कोशिश की। उसने कई विद्वान बुलाए और टिवट्र वोट चरचा की कि क्या अब ब्रिटेन में राजशाही की कोई सार्थकता बची है? क़ई ने कहा कि यह बेकार की खर्चीली व्यवस्था है। इस शादी को लकर जितना खर्चा हो रहा है। वह अकारथ जा रहा है। एक स्त्रीत्ववादी यास्मीन ने राजशाही के फालतू होने की जमकर खबर ली। 'साठ लाख पाउंड' के खर्चे के मुकाबले पांच लाख की कमाई पर फब्ती कसी। लेकिन किसी ने इसे निंदनीय नहीं कहा। टिवट्र पर सत्तर फीसद लोग शादी को इसी तरह देखने-दिखाने के पक्ष में रहे। तीस फीसद विपक्ष में रहे। अपने अंग्रेजी मीडिया में यह शादी अंग्रेजों की तरह ही महत्त्व पाती रही। यह अंग्रेजी से उसका नाभिनाल-बद्ध है। यों भी हमारा मीडिया यूरोप की किसी एलीटी खबर के लिए दीवाना हुआ रहता है। एक पूरी क्लास है जो अपने को अंग्रेजों की तरह ही दिखाया करती है। यकीन न हो तो अपने अंग्रेजी विज्ञापनों को देखें। यूरोपीय चैनलों के लिए तीसरी दुनिया के देश तभी खबर बनते हैं, जब वहां कोई हादसा हो जाता है या यूरोपीय नीति से उनकी नीति टकरा जाती है। अन्यथा यहां यूरोप में एशिया या दक्षिणी एशिया कोई खबर नहीं होते। आईपीएल का कवरेज अलबत्ता जरूर लाइव दिखता है। उसका भी कारण है। बहुत सारे फिरंगी खिलाड़ी आईपीएल से दाना-पानी पा रहे हैं। यूरोप में उनका कुछ मारकेट है। उनके होने के कारण आईपीएल कवरेज पाता है। भारतीय चैनलों के लिए शादी पहले से ही बड़ा आइटम है। उसका लाइव कवरेज बढ़िया मारकेटिंग अवसर की तरह है। आप शादी का नाम लीजिए। अपने चैनल लाइन लगाकर हाजिर हो जाते हैं। 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' हुआ ही करता है। शादी का कवरेज अपने यहां पूरा धंधा है। 'हम आपके हैं कौन' से लेकर राखी का रियलिटी शादी शो और राहुल महाजन का शादी शो के बाद एक चैनल पर इन दिनों 'शादी तीन करोड़ की' लाइव रियलिटी शो की तरह आती है। सो विलियम और केट की शादी इसी भाव से आई है। इन दिनों अपने मीडिया में उपनिवेशवाद के कई पाठ बन रहे हैं। कई ऐसे उदाहरण बनते दिखते हैं जिन्हें उत्तर उपनिवेशवाद की तरह पढ़ा जा सकता है। विकीलीक्स मीडिया के सूचना के उपनिवेशी और उत्तर उपनिवेशी पाठ का मिक्सड अवसर देता है। इस संदर्भ में उन चुनिंदा 'रहस्योद्घाटनों' को याद किया जा सकता है जो दुनिया के देशों की कूटनीति के खुफिया प्रसंगों से संबद्ध रहे हैं। आरंभ में खबरें अमेरिका से संबद्ध रहीं फिर वे भारत-अमेरिकी सम्बन्धों पर आकर टिक गईं और अब वे स्विस बैंकों में भारतीयों के खातों की तलवार लटका कर एक प्रकार का ब्लेकमेलिया वातावरण बनाए हैं। असांजे ने एक चैनल पर कहा है कि उसके पास ऐसे कई बड़े भारतीय नामों की सूची है जिनका बहुत सा काला धन स्विस बैंकों में जमा है। पिछले डेढ़ महीने से रहस्योद्घाटन की यह तलवार लटकी है और अब तक गिराई नहीं गई है। अरे भई गिरानी है तो गिराओ नहीं तो बार-बार कह कर, समय देकर सावधान करना सौदेबाजी का दूसरा नाम हो सकता है। सौदा पटने पर कुछ लोगों के नामों की घोषणा रोकी भी जा सकती है। विकीलीक्स की खबरों को अपने चैनल किस तरह पेश करते हैं। यह देखते ही बनता है। वे अक्सर उसकी सूचनाओं को ब्रह्म वाक्य की तरह लेते हैं। यह औपनिवेशिकता नहीं तो क्या है कि एक गोरा आदमी जरा सी विपक्षवादी खबरें बनाता है तो सब उसे सच मानकर अपना पेट भरने लगते हैं।