Sunday, February 10, 2013

गांवों के विकास से ही देश का विकास: सचिन

कॉरपोरेट मामलों के मंत्री सचिन पायलट रविवार को पूरी तरह से किसानी रंग में रंगे नजर आए। अपने पिता राजेश पायलट के अंदाज में ही किसानों और देश की सीमा पर तैनात जवानों का दर्द उनके भाषण में झलका तो पिता की तरह ही लोगों का अभिवादन राम-राम सा से किया। अवसर था राजेश पायलट की जयंती के उपलक्ष्य में गुड़गांव के घाटा गांव के चौक पर उनकी मूर्ति के अनावरण का। इस दौरान आयोजित किसान सम्मेलन को सचिन पायलट के साथ-साथ उनकी मां रमा पायलट, हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, सांसद इंद्रजीत सहित हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से कांग्रेस सांसद व विधायकों ने भी संबोधित किया। किसान सम्मेलन में सचिन पायलट ने कहा कि उनके पिता जीए तो किसानों और देश के जवानों के लिए और मरे भी तो इन्हीं के लिए। उनके दिल में हमेशा कसक रहती थी कि कैसे भी किसान मजदूर का बेटा उन पदों पर पहुंचे जहां नीतियां बनती हैं और आज कांग्रेस की सरकार निश्चित तौर पर उन्हीं नीतियों पर चल रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी की सराहना करते हुए सचिन ने कहा कि दोनों के नेतृत्व में युवाओं को आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है, किसानों की चिंता की जा रही है।

11 फ़रवरी 2013
दैनिक जागरण

गृह मंत्रालय ने संभाली सुरक्षा की कमान

संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू को शनिवार तड़के फांसी लगने के बाद हिंसा फैलने की आशंका को देखते हुए गृह मंत्रालय ने सुरक्षा की कमान खुद संभाल ली। शनिवार को अवकाश होने के बावजूद गृह सचिव, संयुक्त सचिव (आतंरिक सुरक्षा) और खुफिया ब्यूरो के निदेशक सुबह से ही अपने दफ्तरों में डटे रहे। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर जहां सेना को सतर्क कर दिया गया, वहीं आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर राज्यों को भी हाई अलर्ट कर दिया गया। देश के हर हिस्से की पल-पल की जानकारी ली जाती रही। जम्मू कश्मीर समेत देश के सभी प्रमुख संवेदनशील शहरों में अभूतपूर्व सुरक्षा के उपाय देर रात ही कर दिए गए थे। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी को शुक्रवार की देर शाम को ही सुरक्षा के लिए एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दे दिए गए थे। अन्य राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को फांसी की खबर सार्वजनिक होने के बाद अलर्ट रहने का निर्देश जारी किया गया।सरकार का यह फैसला काफी देरी से आया, लेकिन अच्छी बात है कि लोगों की भावनाओं की कद्र की गई। सरकार ने बहादुरी का परिचय दिया है। - संजय राउत, शिवसेना प्रवक्ता चौतरफा घिरी कांग्रेस ने सांप्रदायिक ताकतों को खुश करने के लिए अफजल को फांसी दी है। - दीपांकर भट्टाचार्य महासचिव, भाकपा (माले) इस फैसले में देरी हुई। इसकी वजह यह थी कि इसके लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना जरूरी था और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। -अभिषेक मनु सिंघवी, कांग्रेस नेता कांग्रेस ने राजनीतिक कारणों की वजह से ही लंबे अर्से से इस फैसले को लटकाए रखा था। -स्मृति ईरानी, भाजपा सांसद आतंक के गुरू को फांसी भीतर भी गृह मंत्री, गृह सचिव और संयुक्त सचिव (आंतरिक सुरक्षा) के अलावा किसी को इसकी भनक नहीं लगने दी गई। 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर आतंकी हमले के लिए साल 2005 से फांसी का इंतजार कर रहे अफजल की फाइल पिछले 15 दिनों में तेजी से घूमी। जयपुर चिंतन शिविर में 20 जनवरी को हिंदू आतंकवाद पर बयान देने के अगले ही दिन गृह मंत्री ने अफजल की दया याचिका ठुकराने की सिफारिश के साथ फाइल मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दी। जिस पर राष्ट्रपति ने तीन फरवरी को मुहर लगा दी। आठ फरवरी को स्थानीय अदालत ने फांसी के लिए शनिवार सुबह आठ बजे का समय तय कर दिया। सुरक्षा कारणों से अफजल के शव को तिहाड़ जेल परिसर में ही दफन कर दिया गया। फांसी का समय तय होने के बाद गृह मंत्रालय इसके बाद की स्थिति से निपटने की तैयारियों में जुट गया था। शुक्रवार देर शाम शिंदे ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला व गृह सचिव आरके सिंह ने डीजीपी को फोन कर इसकी जानकारी दी और राज्य में सुरक्षा के लिए जरूरी एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए। खुफिया ब्यूरो ने अफजल के शव को परिवार को सौंपने की स्थिति में घाटी में स्थिति बेकाबू होने की आशंका जताई थी। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अफजल के परिवार को गुरुवार और शुक्रवार को दो स्पीड पोस्ट भेजकर दया याचिका खारिज होने की जानकारी दे दी गई थी। शुक्रवार शाम राज्य के डीजीपी को अफजल के परिवार तक उसकी फांसी के बारे में सूचना पहुंचाने को कह दिया गया था। अफजल की फांसी के बाद पैदा होने वाली संभावित स्थितियों से निपटने के लिए गृह मंत्रालय ने शनिवार सुबह से ही सुरक्षा की कमान संभाल ली। कंट्रोल रूम से देश भर में घटनाओं की पल-पल की सूचना मंत्रालय में मौजूद गृह सचिव, संयुक्त सचिव आंतरिक सुरक्षा और खुफिया ब्यूरो के निदेशक को दी जा रही थी। इसके अनुरूप संबंधित राज्यों और पुलिस प्रमुखों को जरूरी निर्देश दिए जा रहे थे। गृह मंत्रालय का मानना है कि घाटी में भी अगले कुछ दिनों में स्थिति सामान्य हो जाएगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि घाटी में आतंकवाद पिछले तीन दशक के सबसे निचले स्तर पर है। फिलहाल घाटी में करीब तीन सौ आतंकी सक्रिय हैं और सुरक्षा बल उन पर भारी पड़ रहे हैं। आतंकियों को स्थानीय समर्थन में भी भारी कमी देखी जा रही है। गृह मंत्रालय ने संभाली सुरक्षा की कमान पर नजर रखें और जरूरत पड़ने पर तत्काल उन्हें हिरासत में लें। बस अड्डों, हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों और अन्य सार्वजनिक स्थलों की खुफिया निगरानी बढ़ा दी गई। राज्यों से आने वाली छोटी-बड़ी सभी खबरों और धरना प्रदर्शन की खबरों की गहन समीक्षा होती रही। अफजल की फांसी को लेकर जम्मू- कश्मीर को अति संवेदनशील क्षेत्र के रूप में देखा जा रहा था। वहां के ज्यादातर जिलों में लोगों के सुबह जगने के पहले ही कफ्र्यू लगा दिया गया। राज्य में मोबाइल नेटवर्क जाम कर दिया गया। स्थानीय केबल ऑपरेटरों को तत्काल प्रभाव से प्रसारण रोकने के निर्देश दे दिए गए। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह सीधे राज्यों के पुलिस महानिदेशकों से संपर्क में रहे। मंत्रालय ने जम्मू- कश्मीर के मुख्य सचिव को राज्य की कानून व्यवस्था की विस्तृत जानकारी देने के लिए दिल्ली बुला लिया। गृह मंत्रालय की ओर से राज्यों को भेजी गई एडवाइजरी में स्पष्ट कहा गया कि वे अपने यहां के संवेदनशील क्षेत्रों पर कड़ी नजर रखें। आतंकी धमकियों को देखते हुए राजधानी दिल्ली के अलावा मुंबई, हैदराबाद के साथ इलाहाबाद के कुंभ मेले की सुरक्षा को और पुख्ता करने के निर्देश दे दिए गए हैं। 10 फरवरी को वहां शाही स्नान का पर्व है।
13 फ़रवरी 2013 दैनिक जागरण

Thursday, January 31, 2013

देश में तलवार की धार पर प्रेस




वाशिंगटन, प्रेट्र : दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में शुमार भारत में पिछले कुछ साल के दौरान प्रेस की आजादी पर अंकुश बढ़ा है। हाल ही में जारी व‌र्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत नौ पायदान खिसककर 140वें स्थान पर पहुंच गया है। इंडेक्स तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले एक व्यक्ति के मुताबिक वर्ष 2002 से भारत में प्रेस पर लगाम कसने की कवायद बढ़ी है। वर्ष 2013 के लिए जारी सूची में पत्रकारों को आजादी के मामले में यूरोपीय देश फिनलैंड, नीदरलैंड्स और नॉर्वे सबसे ऊपर हैं। वहीं, तुर्कमेनिस्तान, उत्तरी कोरिया और इरीट्रिया लगातार तीसरे साल भी सूची में सबसे नीचे हैं। सूची में 140वें स्थान पर लुढ़कने वाला भारत एशिया में सबसे नीचे पहुंच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2002 के बाद पत्रकारों पर गंभीर हमले और इंटरनेट सेंसरशिप में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वहीं, पत्रकारों पर हमला करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं करने के मामले भी सामने आए हैं। चीन एक स्थान उछलकर 173वें स्थान पर पहुंच गया है। चीन में कई पत्रकार और नेटीजन जेल में हैं। गैरसरकारी संगठन रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स द्वारा जारी प्रेस आजादी सूचकांक में राष्ट्रों की राजनीतिक प्रणाली पर प्रत्यक्ष टिप्पणी नहीं की गई है, लेकिन स्पष्ट किया गया है कि जिन देशों में सही व वास्तविक सूचनाएं उपलब्ध कराने वालों को बेहतर सुरक्षा दी जाती है, उन देशों में मानवाधिकार पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं। एनजीओ के महासचिव क्रिस्टोफर डेलियर के मुताबिक, तानाशाहों वाले देशों में बिना लागलपेट के खबर मुहैया कराने वालों और उनके परिजनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है, जबकि लोकतांत्रिक देशों में मीडिया को आर्थिक समस्याओं के कारण समझौता करना पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत सहित वे तमाम देश सूची में नीचे खिसके हैं, जहां क्षेत्रीय मॉडल को तरजीह दी जाती है। दक्षिण एशिया में वर्ष 2012 के दौरान खबर व सूचनाओं से जुड़े लोगों के लिए माहौल तेजी से खराब हुआ है। मालदीव सूची में 30 स्थान लुढ़ककर 103वें स्थान पर पहुंच गया है। मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद के इस्तीफे के बाद मीडियाकर्मियों को धमकी के साथ ही हिंसा का शिकार भी बनाया गया। पाकिस्तान (159वां स्थान), बांग्लादेश और नेपाल (118वां स्थान) में भी पत्रकारों की स्थिति बिगड़ती जा रही है।
  Dainik jagran National Edition 31-01-2013 page -014 (ehMh;k)