Monday, February 21, 2011

तलवार की धार पर मीडिया


यदि उत्तर भारत के किसी राज्य में पांच दिनों के लिए अखबार बंद होने का ऐलान किया जाता, तो शायद यह एक बड़ी खबर बनती। पर मणिपुर में इस तरह की हलचल हमारे समाज का अहम हिस्सा नहीं बन पाती। वहां की तकलीफें हमारे लिए बेमानी हैं। अलगाव की मांग कर रहे इस राज्य के प्रति हमारे जनमानस में एक विलगाव पहले से ही मौजूद है, जिसे वहां की संस्कृति, भाषा और स्वरूप ने मजबूत आधार प्रदान किया है। मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद बेशक वहां के पत्रकारों ने सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार खत्म कर दिया है, लेकिन इससे उनके आक्रोश को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
दरअसल मणिपुर के एक प्रतिष्ठित दैनिक सनलाइबाक के संपादक बाम मोबी को पिछले दिनों पुलिस ने एक प्रतिबंधित संगठन से संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। हालांकि बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन पत्रकारों की मांग है कि उन पर लगाए गए सभी आरोप सरकार वापस ले ले। मणिपुर के लोग पिछले कई वर्षों से दमन के खिलाफ गांधीवादी तरीका अपनाते हुए विफल रहे हैं। ऐसे में प्रतिरोध के स्वर और भी मुखर हुए हैं। प्रतिरोध करने वाले संगठनों की संख्या 30 से ऊपर पहुंच गई है। जन समर्थन हासिल कर चुके प्रतिबंधित संगठनों की बात सामने लाने के लिए उनसे संबंध रखना पत्रकारों के लिए जरूरी है। लेकिन उनसे संबंध रखने पर सरकार की नजर टेढ़ी हो रही है। यह पूर्वोत्तर के मीडिया के लिए वाकई संकट का समय है। मणिपुर जैसे राज्यों में वास्तविक स्थितियां लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत जा रही हैं। ऐसे में, लोकतंत्र की रक्षा के लिए स्वयंनिर्मित संस्थान राजसत्ता के लिए खतरा बन गए हैं। इन पर दबाव होता है कि ये सरकार समर्थक हो जाएं और सरकारी कामों को जायज ठहराएं अन्यथा सत्ता की दमनकारी अभियानों में दबा दिए जाएंगे। लिहाजा जमीनी स्तर के किसी भी कार्यकर्ता के राजद्रोही होने की पूरी आशंका है।
सरकारी संस्थानों में कार्यरत बुद्धिजीवी जब न्यायपालिका के किसी फैसले का विरोध करते हैं, तो तथ्यात्मक आधार पर वह भी एक तरह का राजद्रोह ही होता है। लेकिन पूरा मसला इस बात पर निर्भर करता है कि संरचनात्मक आधार पर राज्य के लिए खतरा कौन और कैसे बन रहा है। यह कल्याणकारी राज्य में बढ़ते वर्गीय विभाजन का एक कटु स्वरूप है, जो इन दोनों के अंतर्विरोध से निकलकर आ रहा है। ऐसे में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों आदि के लिए निष्पक्ष भूमिका निभाना मुश्किल होता जा रहा है। यह स्थिति बिनायक सेन, उड़ीसा के पत्रकार लक्ष्मण चौधरी से लेकर कश्मीर और मणिपुर के पत्रकारों-कार्यकर्ताओं तक पर लागू हो रही है। भले ही उनकी गिरफ्तारी के कारण स्थानीय आधार पर भिन्न हों, पर क्रियात्मक रूप से वे सभी एक ही धरातल पर खड़े हैं।
ऐसे में मीडियाकर्मियों को दो तरह के द्वंद्व में काम करना पड़ता है-एक तरफ अलग-अलग कारणों से चल रहे विभिन्न आंदोलनों की वास्तविक स्थितियों से लोगों को वाकिफ कराना, तो दूसरी तरफ सरकार की दमनकारी नीतियों से बचना। जबकि सरकार लगातार प्रतिबंधित संगठनों से संबंध रखने के आरोप में उन्हें प्रताड़ित करती है। उन संगठनों से संबंध रखे बगैर वास्तविकता सामने नहीं लाई जा सकती। पर सरकार उन्हें एकपक्षीय और अपनी निगरानी में ही काम करने के लिए बाध्य कर रही है। ऐसे में दायित्व और सुरक्षा बोध, दोनों दांव पर लगे हुए हैं।
जब भी कोई बड़ा आंदोलन स्वरूप लेता है, तो एक बड़ी जन भागीदारी उसमें उभरती है, जिससे मुकरना जनविरोधी कदम ही होगा। खास तौर से उन संस्थानों के लिए, जो जनमत की बहुलता को लोकतंत्र के रूप में देखते हैं। ऐसे में मानवाधिकार, नागरिक अधिकार, संप्रेषण की आजादी के लिए उठने वाली आवाजों की भूमिका क्या होगी? शायद सरकारी प्रतिबंधों को तोड़ते और दमनकारी रवैये से लड़ते हुए ही किसी ध्रुवीकरण की शुरुआत होगी, जहां जन आकांक्षाओं को तरजीह मिलेगी। राज्य के कल्याणकारी स्वरूप को प्रदर्शित करने वाली संस्थाओं के प्रति मोहभंग की शुरुआत यहीं से होगी। हो सकता है कि कॉरपोरेट मीडिया संस्थानों में काम करने वाले किन्हीं दबावों के चलते वर्तमान नीतियों का समर्थन करें, पर प्रतिबद्धताओं के टकराव यहां भी पनपेंगे और पनप रहे हैं।

Sunday, February 20, 2011

कुबेर की कुंजी


टीवी चैनलों के प्रसारकों ने बहुत पहले आत्मानुशासन लागू करने के लिए एक घोषणा पत्र प्रकाशित किया था। उसमें यह भी था कि अंधविश्वास फैलाने वाले संदेश नहीं देंगे। अब संदेश ही नहीं, अंधविश्वास के पूरे आइटम ही बेचे जा रहे हैं और उन्हीं चैनलों पर प्रसारित हो रहे हैं, बेचे जा रहे हैं। सब देख रहे हैं। कोई कुछ नहीं कर रहा। क्यों करें? इन विज्ञापनों में बड़ी कमाई है। मित्रों! आप सिर्फ एक अंगूठी नहीं बेचते। आप अंधविश्वासी मानसिकता का निर्माण करते हैं। उसे प्रामाणिक और वैध बनाते हैं। जरा अपने मीडिया-संकल्प एक बार फिर पढें़। क्या मीडिया की ऐसी परंपरा रही है?
अब कुबेर की कुंजीखरीदें। एक मनोरंजन चैनल पर एक घंटे से सोने जैसी चमकदार कुंजी बेची जा रही है। उसके साथ चमत्कारी कुबेर पादुकाएं,कुबेर कंगन आदि भी हैं। पूरा पेकेज है। क़ीमत हजारों में है लेकिन एक बार लेने में नुकसान नहंीं। पे बैक की गारंटी भी है। यह वही चैनल है, जिस पर कुछ दिन पहले नजर निवारक यंत्रा’ ,‘बाध निवारक यंत्रा’ बिका करते थे, बिकते हैं। कई चरित्रा आकर बताते हैं कि कुंजी लेने मात्र से वे मालामाल हो गए। एक स्त्री कहने लगी कि उसका ब्यूटी पार्लर का बिजनेस चौपट हो गया था, बड़ी मुसीबत थी। फिर यह कुंजी मिली और वारे न्यारे हो गए। अब हालत है कि शहर के सारे गाहक मेरे पार्लर की ओर खिंचे चले आते हैं और अब एक दर्जन ब्रांचेज हो गई हैं। टीवी पर अंधविश्वास के बाजार में पूरी सांप्रदायिक धर्मिक एकता नजर आती है। नजर नजर है वह हिंदू-मुस्लिम-सिख नहीं देखती। इस तरह नजर एक धर्मनिरपेक्ष तत्व है। इसलिए मुस्लिम दिखने वाले चरित्रा भी नजर निवारक यंत्रा बेचने लगे हैं। इन कहानियों में समानता है।उनके उपचारों में भी समानता है। सबक निकलता है कि संकट न धर्म देखता है न जाति। वह सब पर आता है। सब संकट में हैं और सबका इलाज एक ताबीज, एक मंत्रा, एक यंत्रा, एक कुंजी में है। एक मुस्लिम दंपति इन दिनों बाध निवारक यंत्रा बेच रहे हैं। बाध किसी को भी हो सकती है। यह उपरली हवा से हो सकती है। दुश्मन की नजर लगने से भी हो सकती है। इसलिए बाध रोधक यंत्रा लीजिए। इसे लेंगे तो सब ठीक होगा। मेरे साथ यही हुआ। सारा काम ठप्प हो गया था। अब सब ठीक है!
टीवी चैनलों के प्रसारकों ने बहुत पहले आत्मानुशासन लागू करने के लिए एक घोषणा पत्र प्रकाशित किया था। उसमें यह भी था कि अंधविश्वास फैलाने वाले संदेश नहंीं देंगे। अब संदेश ही नहीं, अंधविश्वास के पूरे आइटम ही बेचे जा रहे हैं और उन्हीं चैनलों पर प्रसारित हो रहे हैं। बेचे जा रहे हैं। सब देख रहे हैं। कर कोई कुछ नहीं रहा क्यों करें? इन विज्ञापनों में बड़ी कमाई है। बढ़िया आत्मानुशासन है भाई! लगे रहो चैनल भाई! बिजनेस इज बिजनेस! मंदी है। यह बिजेनेस देता है। आदमी को निराशा से आशा की ओर लाता है और आदमी अच्छी बात करता है। इस तरह इकानॉमी बेहतर होती है। पिछले दिनों एक सत्यकथा पायनियर में देखी थी। एक बिजनेसमैन का बिजनेस ठप हो गया। उसने शेयर मारकेट में पैसा लगाया, डूब गया। उसने एक नामी गिरामी ज्योतिषी जी को पकड़ा। उनका बड़ा नाम था, बड़ा काम था। संकटाये बिजनेसमैन ने विनती की-महाराज मेरा संकट दूर करो। ज्योतिष जी ने माया फैलाई। संकटमोचन के लिए सोने की इकतीस तोले की गाय बनवाई और दान में स्वयं ग्रहण की लेकिन बिजनेसमैन का संकट न टला। बिजनेसमैन और परेशान हुआ। इकतीस तोले की गाय के दान ने उसे और अधिक कर्ज में डुबा दिया। उसके सवाल बढ़ रहे थे। उससे बचने के लिए ज्योतिष जी मौके से गायब हो चुके थे। उसने जाना कि यह ज्योतिषी उसको ठग कर चंपत हो गया है। बेवकूफ बना चुका है। ज्योतिषी के झटके से निपटने के लिए उसने सड़क छाप देसी उपाय सोचा। ज्योतिषी संबंधी सूचना इकठ्ठी की। पाया गया कि उसका एक बेटा है। सोचा उसे अगवा करवा लिया जाए और नौ लाख की फिरौती वसूली जाए तो हिसाब बराबर हो। बिजनेसमैन ने कुछ गुंडों की सहायता से ऐसा ही किया। ढोंगी ज्योतिषी सामने आ गया। अगवा करने वाले बिजनेसमैन को पुलिस ने धर लिया। सारा किस्सा साफ हुआ। कहानी के अंत में बिजनेसमैन पुलिस के चंगुल से बचता हुआ गायब हो गया था। केस चलेगा। दोनों एक दूसरे पर केस करेंगे। संकट टला नहीं बढ़ा। सारे संकट सच होते हैं। सारे ताबीज अंगूठी अंध भरोसा होते हैं। भरोसा आदमी को पाजिटिव रखता है। अगर उसे यह भरोसा न हो कि संकट कट जाएगा तो आदमी निराशा से मर जाएगा। इसी एक कमजोरी का फायदा कई तत्व उठाते हैं। मंदिरों और कचहरियों के रास्तों के आसपास ऐसे ज्योतिषी ओझे अधिक नजर आते हैं। गुजरते परेशान लोग वे सवा रुपए से पांच रुपए से सवा सौ रुपए में आपका भविष्य बताते हैं। आप वहीं ईंट पर बैठ जाइए और हस्तसामुद्रिक के आधार पर अपनी हस्त रेखाओं का रहस्य जानिए!
मेलों में फलित ज्योतिष टाइप किताबें मिलती रहती हैं। ठेले पर ताबीज मिला करते हैं। देखते-देखते शनिदेवता सबके लिए अनिवार्य देवता बन गए हैं। इतने खतरे हैं कि खतरनाककी महिमा बढ़ चली है। केरल में पिछले दिनों मकर किरण को देखने लाखों लोग उमड़े और भगदड़ में सैकड़ों मर गए। पिछले पांच साल में ऐसी दुर्घटनाओं में हजारों लेग मरे हैं। मरते रहेंगे। संकट है न! सरकार संकट में है। अर्थव्यवस्था संकट में है। लोग संकट में है। सब गड़बड़ है। संकट शब्द मीडिया का स्थायी भाव बन चला है। इसने अंधविश्वास का मारकेट बढ़ाया है। संकटग्रस्त का आत्मविश्वास कमजोर होता है। मन कमजोर होता है। आदमी दीन होता है। ऐसे में उसे गारंटी वाला एकमुश्त संकट निवारक चाहिए। वह है गारंटी देने वाला ताबीज, अंगूठी, पादुका, यंत्रा, कुबेर की कुंजी। वह सस्ते में मिल जाती है। कुछ अच्छा होगा! अब तेरे ही चमत्कार का भरोसा है प्रभु। आदमी के कुछ दिन बेहतर गुजरते हैं और आशा में जीता रहता है कि अच्छे दिन आने वाले हैं। अच्छे का मंत्रा जटिल है। समाज में गहरी निराशाएं हैं। इस सारी चमक-दमक के नीचे लोग अधिक अकेले और हताश महसूस करते हैं। कोई सव्रे उस इबारत को नहीं पढ़ता जो इन दिनों आम आदमी के चेहरे पर लिखा है। मीडिया इसी मानसिकता का लाभ उठाता है। मित्रों! आप सिर्फ एक अंगूठी नहीं बेचते। आप अंधविश्वासी मानसिकता का निर्माण करते हैं। उसे प्रामाणिक और वैध बनाते हैं। जरा अपने मीडिया-संकल्प एक बार फिर पढें़। क्या मीडिया की ऐसी परंपरा रही है?

24 नए न्यूज चैनल ‘ब्रेकिंग’ को तैयार


क्राइम आधारित एक चैनल भी आएगा आज तक की तर्ज पर अभी तक भी
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कलानिधि मारन के सन नेटवर्क को एक साथ 13 नए चैनल शुरू करने की अनुमति दे दी है। कलानिधि केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन के भाई और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के भांजे हैं। सन नेटवर्क के साथ ही मंत्रालय ने कुल 39 चैनलों को अपलिकिंग की अनुमति दे दी है। इसमें 24 समाचार चैनल हैं। खाड़ी के मुस्लिम देशों की आवाज बन चुके अल जजीरा को भी भारत में डाउनलिंक की अनुमति मिल गयी है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार इन चैनलों को रूटीन में अनुमति दी गयी है। इनका केस साफ था। गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और खुफिया एजेंसियों की क्लीन चिट मिलने के बाद चैनलों को अपलिंक या डाउनलिंक की अनुमति दी जाती है। स्टार टीवी के चैनल हाई डेफिनिशन पर जा रहे हैं। यानि स्टार प्लस, स्टार गोल्ड, स्टार र्वल्ड, स्टार मूवी का प्रसारण एचडी टेक्नॉलोजी से किया जाएगा। कॉमनवेल्थ गेम्स का प्रसारण दूर्शन ने एचडी से ही किया था। एएक्सएन, एचबीओ, डिस्कवरी का प्रसारण एचडी से होता है। इस तकनीक से छवि अत्यंत साफ सुथरी दिखायी देती है। फ्रांस-24 टीवी को भी भारत से प्रसारण करने की अनुमति मिल गयी है। बहुत दिनों से क्राइम की खबरों पर आधारित चैनल शुरू करने की र्चचा थी। आखिर एक क्राइम चैनल को भी अनुमति मिल गयी है। आज तक की तर्ज पर अभी तक चैनल भी आ रहा है। मालूम हो कि वर्तमान में 600 से ज्यादा चैनल चल रहे हैं।

Friday, February 11, 2011

मीडिया को रोकने की समीक्षा होगी?


मीडिया में रोज आ रहे घोटालों से संबंधी सनसनी खेज खुलासों से परेशान यूपीए सरकार के मंत्रियों ने मीडिया के अधिकारों और स्वतंत्रता की समीक्षा करने की मांग कर डाली है। मंत्रियों का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है लेकिन अब मीडिया व्यावसायिक हो गया है तो क्या उनके लिए स्वतंत्रता का अधिकार जारी रखना चाहिए। मंत्रियों ने सरकार को भंवर निकालने के लिए फिर से गेंद एनडीए के पाले में डालने के लिए एस-बैंड आबंटन की जांच 2003 से कराने की मांग की। उनके मन में सवाल था कि आखिर यह विचार उस वक्त एनडीए के दिमाग में कैसे आया। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को इस बात का एहसास नहीं रहा होगा कि उनके कैबिनेट से साथ एक साथ उन पर सवालों की झड़ी लगा देंगे। सवाल भी बहुत तीखे थे। जैसे समझौता क्यों किया गया, जब समझौता रद्द करने का फैसला हुआ तो उसपर अब तक अमल क्यों किया। और साथ में 2003 में एनडीए सरकार ने ऐसा समझौता करने का विचार क्यों किया। बृहस्पतिवार की कैबिनेट की खास बात यह थी कि आज केवल कांग्रेस कोटे के मंत्री बैठक में मौजूद थे। घटक दलों ने मंत्री शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, अजागिरी, ममता बनर्जी, फारूख अब्दुल्ला, दयानिधि मारन में से कोई भी उपस्थित नहीं था। इसलिए यह बैठक कैबिनेट से ज्यादा कांग्रेस कोर कमेटी जैसी होगी। केवल कांग्रेसी मंत्री होने के कारण मंत्रियों ने खुलकर प्रधानंमत्री से सवाल किये। प्रधानंमत्री ने भी सबको पूछने का मौका दिया। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि आज गठित उच्चाधिकार कमेटी एक महीने में रिपोर्ट देगी तब र्चचा कर लेंगे। लेकिन आज पूछे गए तीखे सवालों में थे-यह सौदा क्यों किया गया। क्या इससे जनता को फायदा होता, या किसी व्यक्ति को। सौदा करने वाले अंतरिक्ष विभाग के लोग ही क्यों थे। पांच साल बाद जब समझौते की समीक्षा की गई और समझौता रद्द करने का फैसला जुलाई 2010 में लिया गया था तो अभी तक रद्द क्यों नहीं किया गया। सबसे ज्यादा सवाल कपिल सिब्बल और व्यालार रवि ने पूछे। आज की बैठक में मीडिया को काबू करने पर भी सवाल उठे। एक मंत्री का कहना था अब तो सूचना का अधिकार कानून बन गया है तो संविधान की धारा 19 (1) (ए) की समीक्षा की जानी चाहिए क्यों कि मीडिया अब व्यवसाय हो गया तो उसे छुट्टा घूमने की अनुमति क्यों दी जाए। बहरहाल इस प्रश्न पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। 
लेकिन शुरुआत तो हो गई : मीडिया को काबू करने की शुरुआत तो हो गई है। आज कैबिनेट में प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण कानून 1867 में व्यापक संशोधन संशोधन करने का फैसला किया है। इस संशोधन में पेनाल्टी का प्रावधान जोड़ा जोड़ा गया है। जिसके अनुसार गड़बड़ करने पर अखबार का प्रकाशन एक महीने से लेकर दो महीने और पंजीकरण रद्द करने का प्रावधान है। आईएनएस के अध्यक्ष कुंदन आर व्यास ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी से आग्रह किया है कि इस प्रावधान को हटाया जाए। 
समझौता रद्द करने पर कितना हर्जाना देना होगा : देबास कंपनी के साथ किये गए समझौते को रद्द करने पर सरकार को कितना नुकसान उठाना पड़ेगा, इस बात की जानकारी भी दो सदस्यीय कमेटी देगी। देबास से समझौता ऐसे ही रद्द नहीं किया जा सकता।


प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण कानून संशोधन के प्रस्ताव को हरी झंडी


केंद्र सरकार ने प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण कानून 1867 में व्यापक संशोधन करने का फैसला किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में यहां बृहस्पतिवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में वर्षों पुरानी प्रक्रि या को चुस्त बनाने और प्रिंट मीडिया नीति के कुछ मुद्दों से निपटने के लिए प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण कानून 1867 में व्यापक फेरबदल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने बैठक के बाद यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित प्रेस और पुस्तक एवं प्रकाशन पंजीकरण विधेयक 2010 में प्रकाशन, समाचारपत्र, पत्र पत्रिका एवं न्यूजलेटर आदि जैसी कई नई परिभाषाओं को शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित विधान के तहत आतंकवादी कार्रवाइयों या राष्ट्र की सुरक्षा के खिलाफ किए गए किसी कार्य के लिए दोषी व्यक्तियों को कोई भी प्रकाशन लाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। सोनी ने बताया कि पुराने कानून में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं था। यह व्यापक विधेयक जल्द ही संसद में लाया जाएगा। यह व्यापक विधान शीर्षक की जांच पड़ताल, अखबारों के इंटरनेट संस्करणों सहित प्रकाशनों की परिभाषा और अगंभीर प्रकाशकों को हतोत्साहित करने के लिए शीर्षक को रोके रखने पर रोक और विदेशी समाचार सामग्री और विदेशी निवेश की सीमा जैसे मुद्दों से निपटेगा। प्रस्तावित विधेयक के तहत शीर्षक आवंटित होने के एक वर्ष के अंदर प्रकाशन शुरू कर देना पड़ेगा। शीर्षक के पंजीकरण के बारे में मेनन ने बताया कि लंबे समय से इस्तेमाल नहीं हो रहे शीर्षकों को आरएनआई ही रोक देगी।

Thursday, February 10, 2011

गांधी ने पत्रकारिता को बनाया परिवर्तन का हथियार


महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविालय, वर्धा के जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित मीडिया संवाद कार्यक्रम में वर्तमान संदर्भ में गांधीजी की पत्रकारिता की प्रासंगिकता विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गिरिराज किशोर ने कहा कि गांधीजी ने पत्रकारिता को परिवर्तन का हथियार बनाया था। जब वे दक्षिण अफ्रीका गए तो उन्होंने देखा कि गिरमिटिया के अनुबंध पर गए भारतीय मजदूरों के साथ वहां के शासक शोषण व अत्याचार करते हैं। उन्होंने वहां चार भाषाओं-तमिल, हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी में इंडियन ओपीनियन नामक पत्र निकाला। अंग्रेज प्रतीक्षा करते थे कि गांधीजी की पत्रिका कब आएगी, उसमें गांधीजी ने क्या कहा, राजनीति के बारे में उनकी क्या योजना है। गांधीजी अपने पत्र में सामयिक, राजनीतिक व सरकार की नीतियों पर छोटी-छोटी टिप्पणियां लिखा करते थे। गांधीजी अखबार को परिवर्तन का माध्यम मानते हुए जनचेतना की बात को स्थान देते थे। उनके पत्र की प्रभावकारी भूमिका के कारण दक्षिण अफ्रीका की सरकार डरती थी। गिरिराज किशोर ने बताया कि जनरल स्पट्स ने एक बार गांधीजी को बुलाकर कहा कि तुम अगर पत्र बंद करते हो तो आप जो मांगेंगे- दूंगा। प्रतिउत्तर में गांधी ने कहा कि अगर मैं तुम्हें कहूं कि तुम अपनी जुबान बंद रखो तो क्या ये मुमकिन होगा। गिरिराज किशोर ने गांधीजी को सबसे बड़े सम्प्रेषक बताते हुए चार्ली चैपलिन और गांधीजी के बीच हुए संवाद का जिक्र किया। चैपलिन जब गांधीजी से मिलने गए तो उन्होंने कहा कि मुझसे मिलकर क्या करोगे, न तुम मुझे सिखा सकते हो और न मैं तुम्हें। चैपलिन तुम्हारा संवाद सबसे अधिक लोगों से है तो चैपलिन ने उत्तर दिया कि गांधीजी आप सबसे बड़े कम्यूनिकेटर हो।

गिरिराज किशोर ने कहा कि गांधीजी संवाद को ऐसे सम्प्रेषित करते थे कि आप सोचने को विवश हों कि आप पर किस प्रकार से शोषण व जुर्म हो रहा है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर सरला एक्ट लगाए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि यह कैसी विडंबना थी कि जिनके पास शादी का सर्टिफिकेट नहीं होगा, उनकी शादी वैध नहीं होगी। भारतीयों के पास शादी का प्रमाण पत्र न होने के कारण अधिकतर स्त्री-पुरुष पति-पत्नी के संबंधों से वंचित हो जाते, इस बात पर गांधीजी ने कस्तूरबा को कहा कि आज से आप मेरी पत्नी नहीं और ये बच्चे मेरे नहीं, क्योंकि हमारे पास शादी का प्रमाण पत्र नहीं है। इस बात को सुनकर कस्तूरबा काफी चिंतित हो गईं और उन्होंने सरला एक्ट हटाने के लिए आंदोलन किया। कस्तूरबा विश्व की पहली महिला हैं, जिन्होंने विदेशी धरती पर अपनी लड़ाई जीती।

अध्यक्षीय वक्तव्य में विश्वविालय के प्रतिकुलपति व वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि गांधी और टैगोर के बीच हुए पत्राचार पर एनबीटी ने पुस्तक प्रकाशित की है। हम परियोजना बनाकर यह प्रयास करें कि गांधीजी के व्यक्तित्व के अलग-अलग पक्षों पर कैसे अनुसंधान हो सके, ताकि दुनिया को पता चल सके कि महात्मा गांधी के नाम पर स्थापित विश्वविालय में उनके न सिर्फ जीवन आदर्शो व दर्शन पर काम हुआ है। कवि आलोक धन्वा ने लोकतंत्र के लिए दूसरों के संवाद सुनने और उनकी संवेदना से जुड़ने की जरूरत का जिक्र करते हुए गांधीजी के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी हमारी रातों में आते थे। बाजारवाद के प्रभावों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज ऐसा बाजार आया है, जो हमें ज्ञान से अज्ञान की ओर ले जा रहा है। हम यह देखें कि क्या कारण है कि पूरी दुनिया गांधी की ओर झुक रही है, यह जानकर कि बाजार विजयी होगा। आखिर इसी बाजारवाद के खतरे से तंग आकर टॉल्सटाय ने मैक्सिम गोर्की से झगड़कर आखिरी तार दिया था। आभार व्यक्त करते हुए जनसंचार के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल के. राय अंकित ने कहा कि गांधीजी ने परिवर्तन के लिए पत्रकारिता को हथियार बनाया था। हमारा यह प्रयास रहेगा कि गांधीयन दर्शन से जोड़कर हम नई पीढ़ी के पत्रकार तैयार करें, जिससे वे आज के बाजारीय प्रणाली में मानवीय जीवन मूल्यों को समझकर पत्रकारिता कर सकें।