Monday, April 30, 2012

मीडिया पर अंकुश ठीक नहीं : खुर्शीद


केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने मीडिया खासकर इलेक्ट्रानिक समाचार चैनलों पर अंकुश लगाने संबंधी भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटूज के सुझाव का विरोध किया है। उन्होंने इलेक्ट्रानिक समाचार चैनलों को परिषद के दायरे में लाने की मांग का विरोध करते हुए रविवार को यहां कहा कि किसी बाहरी अंकुश के बजाय मीडिया को खुद अपने ऊपर अंकुश रखना चाहिए। उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी की प्रेस को अधिक आजादी देने की बात का खुलासा करते हुए कहा कि चुनाव के दौरान पेड न्यूजकी बढ़ती प्रवृत्ति पर लगाम के लिए मंत्रियों का समूह बनाया गया है जो पत्र प्रतिनिधियों से बात करके अपना मत सरकार के आगे रखेगा। संसद में लंबित विधेयकों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मानसून सत्र के दौरान लोकपाल विधेयक सहित आठ विधेयक पारित कराए जाएंगे। उन्होंने कहा कि अन्ना को इस विधेयक का समर्थन करना चाहिए क्योंकि उन्हीं की पहल पर सरकार भ्रष्टाचार केखिलाफ कानून बनाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार प्रयास करेगी कि यह विधेयक राज्यसभा में आम सहमति से पारित हो। खुर्शीद ने कहा कि विदेश में जमा कालाधन मसले पर नजर रखने के लिए केंद्र सरकार ने पहले ही एक अलग विभाग स्थापित कर रखा है और इस मुद्दे पर बाबा रामदेव के अनशन पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि संसद में पारित होने वाले विधेयकों में एक विधेयक भारतीय दण्ड संहिता में संशोधन का भी है जिसमें महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान है। इसके अलावा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून बनाने संबंधी विधेयक भी इनमें शामिल है।

मीडिया रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगाने का पक्षधर नहीं है एनएचआरसी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष केजी बालाकृष्णन ने शुक्रवार को कहा कि आयोग मीडिया रिपोर्टिंग पर किसी भी तरह का प्रतिबंध लगाने का पक्षधर नहीं है। उनसे उच्चतम न्यायालय की ओर से मीडिया रिपोर्टिंग के दिशानिर्देश तैयार करने के लिए एक समिति गठित किए जाने पर आयोग के रुख के बारे में पूछा गया था। आयोग की ओर से आयोजित एक मीडिया कार्यशाला के दौरान उन्होंने कहा, ‘इस मामले में आयोग एक औपचारिक पक्ष है। हालांकी आयोग ने इसमें हस्तक्षेप नहीं करने का फैसला किया है, क्योंकि यह मसला सिर्फ अदालत की कार्यवाही से जुड़ी रिपोर्टिंग से संबंधित है।उन्होंने कहा, ‘आयोग मीडिया रिपोर्टिंग पर किसी भी तरह का प्रतिबंध लगाने का पक्षधर नहीं है, बल्कि मानवाधिकार के मुद्दों पर जागरुकता बढ़ाने के लिए मीडिया के साथ और अधिक जुड़ाव रखना चाहता है।बालाकृष्णन ने कहा कि मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनके संरक्षण में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है।

मीडिया को हदें बताने के लिए गाइड लाइन


अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के लिए दिशा-निर्देश तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को कहा कि यह मामला संवैधानिक प्रावधानों के तहत पत्रकारों की सीमाओं को स्पष्ट करने से संबंधित है। केंद्र ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि न्यायिक कार्यवाहियों पर रिपोर्टिग को नियमित करने को लेकर उच्चतम न्यायालय पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हम चाहते हैं कि पत्रकार अपनी सीमाओं को जाने। मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति डीके जैन, न्यायमूर्ति एसएस निज्जर, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश और न्यायमूर्ति जेएस खेहर शामिल हैं। कोर्ट ने उन आशंकाओं को भी दूर करने की कोशिश की कि अदालती कार्यवाही की मीडिया कवरेज पर दिशा-निर्देशों में कठोर प्रावधान होंगे। पीठ ने कहा, हम इस पक्ष में नहीं हैं कि पत्रकार जेल जाएं। मीडिया कवरेज पर दिशा-निर्देश इसलिए तय करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत प्रेस को प्रदत्त अधिकार और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) को संतुलित किया जा सके। सुप्रीमकोर्ट की हिमायत करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने उन दलीलों का विरोध किया कि दिशा-निर्देश तय कर मीडिया की सीमाएं तय नहीं की जा सकतीं। उन्होंने कहा अनुच्छेद 21 को 19 पर आवश्यक रूप से तरजीह मिलना चाहिए। इंदिरा ने कहा, इसलिए अदालत के समक्ष पेश की गई यह दलील गलत है कि अनुच्छेद 19 (1)(क) के तहत प्रदत्त अधिकार पर अनुच्छेद 19 (2) के तहत विहित रोक के अलावा कोई अन्य रोक नहीं लगाई जा सकती, यह तर्क संवैधानिक व्याख्या के मूलभूत सिद्धांतों को नजरअंदाज करती है।इंदिरा जय सिंह ने कहा कि न्यायिक कार्यवाहियों की रिपोर्टिग को नियमित करने की जरूरत है, लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि मीडिया रिपोर्टिग भी न्याय प्रशासन में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने में योगदान करती है। उन्होंने कहा कि रिपोर्टिग को त्रुटि मुक्त बनाने के लिए अदालत को कार्यवाही का आलेख पत्रकारों को देने का प्रयास करना चाहिए। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सामान्य विधि के तहत कोर्ट की कार्यवाही को प्रकाशित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट या अन्य अदालतों में पत्रकारों के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं है।

मीडिया दिशा-निर्देश मामले में सुप्रीमकोर्ट में नोकझोंक


मीडिया के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के मामले में बुधवार को उच्चतम न्यायालय में उच्चतम न्यायालय में प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ और जाने-माने विधि वेत्ता राजीव धवन के बीच थोड़ी देर के लिए नोक-झोंक जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। दरअसल धवन ने मीडिया से कहा कि मीडिया के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने का यह स्वत: संज्ञान लेकर किया गया प्रयास है। पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने धवन की शिकायत पर आपत्ति जताई और कहा कि इस मुद्दे पर विचार स्वत: संज्ञान लेकर नहीं किया जा रहा है बल्कि सहारा समूह की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फाली नरीमन द्वारा दायर आवेदन पर किया जा रहा है। धवन ने उस वक्त आपत्ति जताई थी कि जब यूथ फॉर इक्वलिटी (वाईएफई) की ओर से अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम मीडिया के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने के सुप्रीमकोर्ट के प्रयास का समर्थन कर रहे थे। सुब्रह्मण्यम ने रेखांकित किया कि कैसे मीडिया और खासतौर पर भाषाई प्रेस संविधान के तहत लगाई गई पाबंदियों को धता बता रहा है। धवन ने प्रधान न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा, अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन एवं निजी स्वतंत्रता का अधिकार) से जुड़े बड़े सवालों का जवाब देना है, लेकिन दलील बिखरी हुई हैं और कई दिशाओं में दी जा रही हैं, जब यह स्वत: संज्ञान लेकर चलाई जा रही कार्यवाही है। उन्होंने कहा, ये दलीलें मीडिया को परेशान कर रही हैं। पीठ ने सुनवाई को उनके द्वारा बाधित किए जाने पर आपत्ति जताई। पीठ ने सुनवाई के पहले ही दिन स्पष्टीकरण दिया था कि आवेदन दायर किए जाने के बाद दिशा-निर्देश निर्धारित करने पर विचार शुरू हुआ। सीजेआइ ने कहा, इसे स्वत: संज्ञान लिया हुआ न कहें। यह स्वत: संज्ञान नहीं है। नरीमन ने आवेदन दायर किया था। इस पर धवन ने कहा कि अगर नरीमन आवेदन वापस ले लेते हैं तो क्या होगा, फिर खुद ही कहा, अगर आवेदन वापस ले लिया जाता है तो यह स्वत: संज्ञान लिया हुआ ही तो हो जाएगा। पीठ ने फिर दोहराया कि सुनवाई स्वत: संज्ञान लेकर नहीं की जा रही है और सेबी विचार-विमर्श के लिए तैयार है। यहां तक कि अटार्नी जनरल ने दिशा-निर्देश का समर्थन देने का संकेत दिया है। धवन पीठ से यह कहते हुए अपनी जगह पर बैठ गए कि हम अपनी यह राय रखने के हकदार हैं कि यह स्वत: संज्ञान लेकर की जा रही सुनवाई है। कुलदीप नैयर करेंगे विरोध बेंगलूर : प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा कि अदालती रिपोर्टिग पर मीडिया के लिए सुप्रीमकोर्ट के प्रस्तावित दिशानिर्देश के खिलाफ वह मुहिम चलाएंगे। नैयर ने यहां एक श्रद्धांजलि समारोह में कहा, यदि सुप्रीमकोर्ट प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है तो मैं उसका विरोध करूंगा। हालांकि मैं भारत के प्रधान न्यायाधीश को बड़े सम्मान की दृष्टि से देखता हूं लेकिन मीडिया के दिशानिर्देश संबंधी मुद्दा एक अन्य तरह के आपातकाल के जैसा है।

Monday, April 23, 2012

सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने को विशेषज्ञ दल जरूरी


मीडिया की आजादी को जिम्मेदारियों से जोड़ने की वकालत करते हुए प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कडेय काटजू ने रविवार को सरकार से अनुरोध किया कि सोश्यल मीडिया का दुरुपयोग लोगों और संगठनों को बदनाम करने में होने से रोकने के तरीके तलाशने के लिहाज से विशेषज्ञों का एक दल बनाया जाना चाहिए। सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को लिखे पत्र में काटजू ने निराशा जताते हुए कहा कि सोश्यल मीडिया में लोगों, संगठनों, धर्मो व समुदायों को बदनाम करने के लिए इसका दुरुपयोग करने का नया चलन शुरू हो गया है। उन्होंने पत्र में कहा कि ताजा उदाहरण एक सीडी के प्रसार का है, जिसे लेकर यहां तक कि उसे बनाने वाले ने भी स्वीकार किया कि उच्चतम न्यायालय के एक प्रतिष्ठित वरिष्ठ वकील और संसद सदस्य को बदनाम करने तथा एक केंद्रीय मंत्री को धमकाने के लिए इसमें छेड़छाड़ की गई है। काटजू ने इस बात पर अफसोस जताया कि सोश्यल मीडिया ने सीडी को लेकर अदालत के निर्देश के बावजूद इसे जारी किया। सोश्यल मीडिया पर पाबंदियों के लिहाज से कानून की मांग करते हुए उन्होंने कहा कि जब तक सोश्यल मीडिया पर कुछ लगाम नहीं कसी जाती तब तक भारत में किसी की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं रहेगी। उन्होंने लिखा है, ‘मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि इस समस्या से निपटने के रास्ते तलाशने के लिए कानून एवं तकनीक विशेषज्ञों की एक टीम बनाई जाए। इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री को छांटने के लिए उचित कानून बनाने की प्रक्रि या शुरू की
जाए।मीडिया की स्वतंत्रता के विषय में उन्होंने कहा, ‘मैंने बार-बार कहा है कि हमारे देश में मीडिया की आजादी है लेकिन कोई भी स्वतंत्रता अपने आप में संपूर्ण नहीं होती और उसके साथ जिम्मेदारियां भी जुड़ी होती हैं।काटजू ने कहा कि किसी व्यक्ति की साख मूल्यवान होती है और शरारती लोगों द्वारा इसे नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

असाधारण केस में ही कोर्ट रिपोर्टिग पर हो रोक


मीडिया गाइडलाइन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार को अपना पक्ष रखते हुए इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी ने कहा कि रेयरेस्ट आफ द रेयर श्र्रेणी के मामलों में ही अदालती कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि इस बारे में कोई संवैधानिक उपचार नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी की तरह आइएनएस के वकील पराग त्रिपाठी ने तर्क दिया कि गलत रिपोर्टिग के मामले में अदालत की अवमानना का कानून पहले से ही मौजूद है। इससे पहले भी कई वरिष्ठ अधिवक्ता मीडिया के लिए गाइडलाइन तैयार करने के सुप्रीम कोर्ट के रुख का विरोध कर चुके हैं। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को संकेत दिया था कि वह तमाम पक्षों से मिले सुझावों को एक सिफारिश के तौर पर संसद को भेज सकती है। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अदालत की कार्यवाही की कवरेज करने के मामले में मीडिया के लिए दिशानिर्देश तय करने के उच्चतम न्यायालय के प्रयासों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि कानून का शासन और मीडिया की स्वतंत्रता के बीच संतुलन कायम करने की जरूरत है। साल्वे ने पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष मीडिया दिशानिर्देशों के बारे में कहा कि संस्थागत शुचिता के हितों की रक्षा के लिए यह जरूरी हो गया है। विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया के आगमन के बाद यह जरूरी है जिसके कारण एक नया आयाम पैदा हो गया है। साल्वे ने कहा कि महत्वपूर्ण मामलों की रिपोर्टिंग से कई बार अदालत की कार्यवाही के संचालन पर खासा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पीठ के सुझाव का समर्थन किया। पीठ ने सुझाव दिया था, क्या हमे अनच्च्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार जिसमें प्रेस आजादी शामिल है) और अनच्च्छेद 21 (जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार) का दायरा तय नहीं करना चाहिए ताकि संविधान के तहत प्रदत्त दोनों अधिकारों के बीच संतुलन कायम हो सके। साल्वे ने अदालत की कार्यवाही की कवरेज के लिए सामान्य दिशानिर्देशों के विचार का समर्थन किया विशेषकर निजता के अधिकार के सिद्धांत और अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों की गरिमा की रक्षा को ध्यान में रखते हुए। उन्होंने न्यायमूर्ति डी के जैन, न्यायमूति एस एस निज्जर, न्यायमूति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूति जे एस खेहर की सदस्यता वाली पीठ से कहा, आप न्यायमूर्तियों का दायित्व है कि अचुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए कदम उठाया जाए। साल्वे ने वोडाफोन टैक्स मामला, आरुषि तलवार हत्याकांड और अंबानी बंधुओं के गैस विवाद में एक पक्ष की ओर से पेश होने के दौरान आई परेशानियों का जिक्र करते हुए कहा कि जनहित को देखते हुए यह जरूरी हो गया है कि अदालत यह तय करे कि अदालती कार्यवाही के कवरेज के मामले में मीडिया को किस हद तक उन्मुक्ति (विशेष छूट) प्राप्त है।

Monday, April 16, 2012

इंटरनेट की अभूतपूर्व खुफिया निगरानी शुरू


फेसबुक ट्विटर या यूट्यूब से ई मेल तक पूरी वेब दुनिया पर शिकंजा कसने में सरकार को जरा भी देर नहीं लगेगी। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की पहचान ही नहीं बल्कि वेब पर संवाद सामग्री (कंटेंट) पर भी पैनी नजर रखी जा रही है। एक-एक क्लिक, एक-एक सर्च, अपडेट, चैट और मेल को कोई देख रहा है। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट की मंजूरी के बाद देश में इंटरनेट मॉनीटरिंग की सबसे बड़ी परियोजना पर अमल शुरू हो गया है। इस अभियान में खुफिया एजेंसियों का पूरा दस्ता लगा है। स्थलीय नेटवर्क से लेकर उपग्रह और समुद्री केबल तक सभी जगह इंटरनेट ट्रैफिक मॉनीटरिंग प्रणाली लगाई जा रही है। देश में अलग-अलग जगहों पर करीब 53 मॉनीटरिंग मॉड्यूल स्थापित हो चुके हैं। उन्हें इनक्रिप्टेड (कूट) संदेश खोलने और कंटेंट को जांचने के एक केंद्रीय तंत्र से जोड़ा जा रहा है। लगभग 450 करोड़ रुपये के इस अभियान की तकनीकी कमान एनटीआरओ के हाथ है। खुफिया ब्यूरो (आइबी), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए), मिलिट्री इंटेलीजेंस (एमआइ), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), दूरसंचार विभाग, सी-डॉट, सूचना तकनीक विभाग, टेलीकॉम इंजीनियरिंग सेंटर (टीईसी) इन मॉनीटरिंग प्रणालियों का संचालन करेंगे। आतंकी खतरों, साइबर सुरक्षा और गोपनीयता की जरूरतों के चलते इंटरनेट मॉनीटरिंग का अभियान गजब की तेजी के साथ तैयार हुआ है। इसके लिए खुफिया एजेंसियों, रक्षा और गृह मंत्रालय और एडवांस कंप्यूटिंग संस्थानों के बीच पिछले छह माह में कई बैठकें हुईं। एनटीआरओ पूरे अभियान का सूत्रधार है, जिसे करीब 20 करोड़ रुपये का शुरुआती बजट दिया गया है। पूरे अभियान में अहम पहलू उस अकूत कंटेंट की निगरानी है जो चैट, मेल, सोशल मीडिया, फोटो के जरिए वेब में तैरता है। इसके लिए विशेष तकनीक का इस्तेमाल होगा। इसके लिए सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एंड रोबोटिक्स (केयर) भी मदद दे रहा है। एनटीआरओ ने जल (समुद्री केबल), थल (स्थलीय इंटरनेट गेटवे) और आकाश (उपग्रह इनमारसेट) के लिए अलग मॉनीटरिंग मॉड्यूल तैयार किए हैं। इंटरनेट निगहबानी के लिए एक केंद्रीय मॉनीटरिंग सिस्टम के साथ एक टेलीकॉम टेस्टिंग एंड सिक्यूरिटी प्रमाणन केंद्र भी होगा जो दूरसंचार नेटवर्क में लगने वाले उपकरणों को सुरक्षा स्वीकृति देगा।