Thursday, March 29, 2012

बंगाल की लाइब्रेरियों में सिर्फ 11 अखबार


पश्चिम बंगाल में अंग्रेजी और अधिक प्रसार वाले बंगाली समाचार पत्रों के सरकारी अनुदान प्राप्त सभी पुस्तकालयों में न रखने का सर्कुलर जारी होने से भड़के विवाद को शांत करने के प्रयास में ममता बनर्जी सरकार ने बुधवार को डैमेज कंट्रोल के लिए आदेश में संशोधन करते हुए कुछ और समाचार पत्रों को शामिल किया है। राज्य सरकार ने सोमवार को सकाल बेला, एकदिन, खबर 365, दैनिक स्टेट्समैन, प्रतिदिन (बांग्ला), सन्मार्ग (हिंदी), आजाद हिंद, अखबारे मशरीक (उर्दू) समाचार पत्रों को ही पुस्तकालयों में रखने का सर्कुलर जारी किया था, बुधवार देर रात इस सूची में अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया, आजकल (बांग्ला) और ओलचिकी (नेपाली) को भी शामिल कर दिया। अधिक प्रसार वाले अधिकतर अखबार अब भी इस सूची से गायब हैं, यानी सूबे की लाइब्रेरियों में ममता की पसंद के ही अखबार दिखेंगे। सूबे के ग्रंथागार मंत्री अब्दुल करीब चौधरी ने ममता से मुलाकात करने के बाद कहा था कि सरकारी अनुमोदित पुस्तकालयों में सिर्फ आठ समाचार पत्रों के ही रखने को सर्कुलर किसी भी कीमत में वापस नहीं लिया जाएगा। यह सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसे वापस नहीं लिया जाएगा। इससे ममता बनर्जी वाकिफ हैं। उनके इस निर्णय की सत्ताधारी दल के सहयोगी दल कांग्रेस सहित वामदलों ने तीखी आलोचना कर रहे थे। कांग्रेस नेता इस मुद्दे के साथ तीन जिलों के जिला परिषद का आर्थिक अधिकार छीनने के मामले में माकपा के ही सुर में बोल रहे थे। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कबीर सुमन ने भी इसका विरोध किया। नेता विपक्ष सूर्यकांत मिश्र ने कहा कि दरअसल राज्य सरकार सभी गणतांत्रिक संस्थाओं को तोड़ना चाहती है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा है कि यह अनावश्यक निर्णय है। जिला परिषद का अधिकार छीनकर डीएम को सौंपे जाने को लेकर कांग्रेस सांसद अधीर चौधरी ने कहा कि यदि अधिकार छीनने का फैसला वापस नहीं लिया गया तो पार्टी राइटर्स अभियान चलाएगी। माकपा भी इन मुद्दों पर विधानसभा से लेकर जिले तक विरोध जता रही है। हालांकि दिल्ली में जब कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी से इस मामले में पूछा गया तो वह सिर्फ इतना बोले, इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है, लिहाजा मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं। 


Tuesday, March 20, 2012

मीडिया स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बने संयुक्त समिति : काटजू


भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों की हिफाजत के लिए एक संयुक्त समिति बनाने का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए उन्होंने प्रमुख न्यूज चैनलों के संपादकों से सहयोग की अपील की है। इस समिति का काम मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करना भी होगा। ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शाजी जमां और महासचिव एनके सिंह को लिखे एक पत्र के जरिए काटजू ने कहा कि समिति में पीसीआइ और बीईए के सदस्यों की संख्या बराबर होगी। काटजू ने पत्र में लिखा मेरा सुझाव है कि प्रेस परिषद और बीईए के बीच एक समन्वय समिति बनाई जाए जिसमें दोनों संस्थाओं के तीन या इससे अधिक प्रतिनिधि हों। काटजू ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है जिसकी सुरक्षा के लिए संयुक्त समिति की जरूरत महसूस की गई है। उन्होंने पत्र में लिखा देश के कई हिस्सों में मीडिया की आजादी को खतरा पैदा हो गया है और इस खतरनाक प्रवृत्ति के खिलाफ हमें मिलकर लड़ना चाहिए वरना हालात बद से बदतर हो सकते हैं। काटजू के पत्र में कहा गया है कि देश के कई हिस्सों में मीडियाकर्मियों पर हमले हुए हैं, जबकि अन्य जगहों पर सरकारों ने प्रोपराइटरों पर उन पत्रकारों को नौकरी से निकालने या तबादला करने का दबाव बनाया है जिन्होंने सरकार के खिलाफ लिखा। उन्होंने कहा मैं मीडिया की आजादी को उन जगहों पर बरकरार रखने के लिए लड़ता रहा हूं जहां इसे खतरा है। जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्य इसके उदाहरण हैं। अपने पत्र में काटजू ने स्पष्ट किया कि यूं तो प्रेस परिषद सिर्फ प्रिंट मीडिया के मामलों को देखता है, लेकिन मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आजादी के लिए भी लड़ता रहा हूं। प्रेस परिषद के अध्यक्ष ने ब्रोडकास्ट एडीटर्स एसोसिएशन से अनुरोध किया है कि वे इस प्रस्ताव पर जल्द से जल्द अपनी राय दें ताकि इसे परिषद की अगली बैठक में विचारार्थ रखा जाए। उन्होंने कहा कि अगर आप शीघ्रता से अपनी राय देंगे तो 26 से 28 मार्च को लखनऊ में होने वाले बैठक में इसे रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि मैं इस बाबत आश्वस्त हूं कि इस प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया जाएगा। मीडिया को लेकर अक्सर बयान देने वाले भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश मार्कडेय काटजू देश के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों पर हो रहे हमले और सत्ता के विरोध में लिखने पर डाले जा रहे दबाव को लेकर भी काफी मुखर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि हाल के दिनों में विभिन्न राज्यों में पत्रकारों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाला जा रहा है।