पश्चिम बंगाल में अंग्रेजी और अधिक प्रसार वाले बंगाली समाचार पत्रों के सरकारी अनुदान प्राप्त सभी पुस्तकालयों में न रखने का सर्कुलर जारी होने से भड़के विवाद को शांत करने के प्रयास में ममता बनर्जी सरकार ने बुधवार को डैमेज कंट्रोल के लिए आदेश में संशोधन करते हुए कुछ और समाचार पत्रों को शामिल किया है। राज्य सरकार ने सोमवार को सकाल बेला, एकदिन, खबर 365, दैनिक स्टेट्समैन, प्रतिदिन (बांग्ला), सन्मार्ग (हिंदी), आजाद हिंद, अखबारे मशरीक (उर्दू) समाचार पत्रों को ही पुस्तकालयों में रखने का सर्कुलर जारी किया था, बुधवार देर रात इस सूची में अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया, आजकल (बांग्ला) और ओलचिकी (नेपाली) को भी शामिल कर दिया। अधिक प्रसार वाले अधिकतर अखबार अब भी इस सूची से गायब हैं, यानी सूबे की लाइब्रेरियों में ममता की पसंद के ही अखबार दिखेंगे। सूबे के ग्रंथागार मंत्री अब्दुल करीब चौधरी ने ममता से मुलाकात करने के बाद कहा था कि सरकारी अनुमोदित पुस्तकालयों में सिर्फ आठ समाचार पत्रों के ही रखने को सर्कुलर किसी भी कीमत में वापस नहीं लिया जाएगा। यह सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसे वापस नहीं लिया जाएगा। इससे ममता बनर्जी वाकिफ हैं। उनके इस निर्णय की सत्ताधारी दल के सहयोगी दल कांग्रेस सहित वामदलों ने तीखी आलोचना कर रहे थे। कांग्रेस नेता इस मुद्दे के साथ तीन जिलों के जिला परिषद का आर्थिक अधिकार छीनने के मामले में माकपा के ही सुर में बोल रहे थे। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कबीर सुमन ने भी इसका विरोध किया। नेता विपक्ष सूर्यकांत मिश्र ने कहा कि दरअसल राज्य सरकार सभी गणतांत्रिक संस्थाओं को तोड़ना चाहती है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा है कि यह अनावश्यक निर्णय है। जिला परिषद का अधिकार छीनकर डीएम को सौंपे जाने को लेकर कांग्रेस सांसद अधीर चौधरी ने कहा कि यदि अधिकार छीनने का फैसला वापस नहीं लिया गया तो पार्टी राइटर्स अभियान चलाएगी। माकपा भी इन मुद्दों पर विधानसभा से लेकर जिले तक विरोध जता रही है। हालांकि दिल्ली में जब कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी से इस मामले में पूछा गया तो वह सिर्फ इतना बोले, इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है, लिहाजा मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं।
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