Friday, December 16, 2011

मायावी दुनिया रचता न्यू मीडिया

न्यू मीडिया, एक लहर के समान दुनिया भर में किसी न किसी कारण लगातार चर्चा में रह रहा है। अपने यहां अभी यह केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइटों को अपनी विषयवस्तु पर छन्नी लगाकर उनकी दृष्टि में जो थोथा है उसे न आने देने और आ गया तो हटा देने की इच्छा जताने के कारण चर्चा में है। भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कडेय काटजू ने इसका समर्थन किया है। काटजू ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर प्रिंट मीडिया के समान इलेक्ट्रॉनिक एवं समाचार से जुड़ी वेबसाइट्स को भी प्रेस परिषद के दायरे में लाने का अनुरोध किया है। गरमागरम बहस जारी है। जो अपने मातहत काम करने वालों को नियंतण्रमें रखने की सारी जुगत करते रहते हैं वे भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के शब्दवीर बने हैं। इसके पूर्व भारत सहित दुनिया भर में पिछले दोढार्इ सालों में जो आंदोलन हुए, उसमें भूमिका को लेकर तो न्यू मीडिया लगातार चर्चा में है ही। अगर न्यू मीडिया नहीं होता तो ये आंदोलन नहीं होते, ऐसा कहने वालों की कोई कमी नहीं है। दुनिया के समाजशास्त्रियों, भविष्यवेत्ताओं के एक वर्ग ने इसे डिजिटल डेमोक्रेसी नाम दिया है। इसके राजनीतिक प्रक्रिया संबंधी प्रभावों पर विस्तृत अध्ययन हो रहे हैं, शोध प्रबंध आ रहे हैं। इन अध्ययनों का सार यही है कि यह राजनीति या लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप में परिवर्तन नहीं ला सकता। डिजिटल तकनीकों तक पहुंच रखने वाले सक्षम लोग , वे चाहे राजनीति के अंदर के हों या बाहर के- इसका उपयोग करते रहेंगे, पर शक्ति संतुलन एवं राजनीतिक संरचना नहीं बदलेगी। न्यू मीडिया की आंदोलन में भूमिका की चर्चा ईरान और अरब की क्रांतियों के संदर्भ में काफी हुई है। 2009 को जब ईरान के चुनाव परिणाम आए, भारी संख्या में ईरानी सड़क पर उतरे और विरोध किया। पश्चिम ने इसका श्रेय फेसबुक, यू ट्यूब और ट्वीटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स को दिया। पश्चिमी मीडिया में इसे ट्वीटर रिवोल्यूशन ही कहा गया। अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि ट्वीटर को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए क्योंकि उसके बिना ईरान के लोग लोकतंत्र तथा आजादी के लिए खड़े नहीं होते। लेकिन ईरान में ट्वीटर का अस्तित्व नहीं था। ईरान के एक लोकप्रिय ब्लॉगरअलीरेजा रेजेई, जिन्होंने स्वयं विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था- कहते हैं कि न्यू मीडिया ने न प्रदर्शनकारियों को मोबलाइज किया और न उनकी हौसला अफजाई की। ईरान में जो कुछ हुआ, वह जन आंदोलन था जो वास्तविक जनों द्वारा किया गया था। इनमें से अनेक न इंटरनेट और न्यू मीडिया का प्रयोग करते हैं और न उन तक उनकी पहुंच है। हां, मोबाइल फोन पर संदेशों ने इसमें योगदान दिया। वस्तुत: प्रदर्शन को कुचलने के प्रयासों ने इसे ज्यादा तीखा बना दिया। आंदोलन को ताकत से दबाने की कोशिश हुई तो लोगों ने सेल फोन से हिंसा की वीडियोग्राफी आरंभ कर दी। ये वीडियो यू ट्यूब पर अपलोड हुए और वहां से ट्वीटर एवं फेसबुक पर शेयर किए गए। लोगों ने उन वीडियोज को देखा, किंतु यह बाहर के देशों तक जानकारी पहुंचाने के ज्यादा काम आया। इरानियन ब्लॉगर एवं इंटरनेट एक्टिविस्ट वाहिद ऑन लाइन ने कहा कि ट्वीटर की भूमिका के बारे में अतिरंजना ज्यादा है। चूंकि बाहरी दुनिया उससे ईरान की घटनाओं को देख रही थी, इसलिए लगा कि विद्रोह में उसकी भूमिका है। अरब जगत में ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया में जो राजनीतिक परिवर्तन हुआ, उसमें न्यू मीडिया की भूमिका पर अध्ययन की जरूरत है। लेकिन न्यू मीडिया की भूमिका ईरान से बहुत ज्यादा इन देशों में हो ऐसा लगता नहीं। ट्वीट्स पूरी दुनिया में है, इसलिए मीडिया को इसका ध्यान आता है एवं यह मीडिया से जुड़े लोगोें के बीच पूरे वि में फैल जाता है। फेसबुक की भी यही स्थिति है। तहरीर चौक के जमावड़े के दौरान ट्वीटर, फेसबुक पर लोग सक्रिय थे लेकिन आंदोलन सड़कों पर हुआ। न्यू मीडिया का चरित्र ही सड़कों पर आंदोलन के विपरीत है। फेसबुक पर ज्यादा व्यस्त होने वाले यथार्थ से वचरुअल र्वल्ड में सिमट जाते हैं। आंदोलन ऑनलाइन, वचरुअल र्वल्ड या साइबर दुनिया में नहीं हो सकता। दुनिया के अनजाने लोग स्वच्छंद सोच को अभिव्यक्त कर यदि क्रांतियां करने लगें तो आंदोलनों के लिए इतने परिश्रम की आवश्यकता ही नहीं। आधुनिक पत्रकारिता और मीडिया की पैदाइश बाजार पूंजीवाद के विचार से विकसित औद्योगिक क्रांति से हुई है। न्यू मीडिया भी पूंजीवाद के प्रचंड रूप बाजार पूंजीवाद की पैदाइश है। पुरानी गाथाओं में दैत्यों-राक्षसों द्वारा अत्यधिक भक्षण की कथाओं को याद करिए तो पूंजीवाद के ज्यादातर यंत्र वैसे ही नजर आएंगे। इसमें ऐसा कोई यंत्र नहीं जो बिना ऊर्जा के चलता हो, जिसे बनाने में प्रकृति की अनमोल धरोहर खर्च न हुई हो, जिससे स्वास्थ्य एवं प्रकृति को कोई हानि न होती हो। एक बड़े विचार और व्यवहार में पूंजीवाद और उसकी अनुचर बनी औद्योगिक और तकनीकी क्रांति का बड़ा राक्षस और न्यू मीडिया के सारे यंत्र जो हमारे हाथों में हैं उसके ही वंशज हैं। न्यू मीडिया के रूप में हर सक्षम हाथ में छोटा राक्षस है जो मायावी संसार रचने की विनाशलीला मचा रहा है। एक बड़े वर्ग को इसके विनाश में आनंदातिरेक की अनुभूति हो रही है! न्यू मीडिया का संस्कार नियंतण्रऔर संतुलन के विपरीत है। हालांकि संस्कार से संयमी कई व्यक्ति किसी साइट पर अच्छी बातें लिख रहे हैं या कुछ अच्छा करने की प्रेरणा भी दे रहे हैं लेकिन ऐसे लोग अल्पसंख्यक हैं। न्यू मीडिया में सबसे ज्यादा स्पेस काम क्रीड़ा यानी पोर्न साइटों के पास है और सर्वाधिक विजिटर भी इनके ही हैं। न्यू मीडिया के माध्यम से समाज की सम्पूर्ण निजता का चीरहरण हो रहा है। सोशल नेटवर्किंग नाम से ऐसा लगता है जैसे समाज के बीच संर्पकों का जाल बुना जा रहा हो। जिस देश में व्यक्ति को सम्पूर्ण सृष्टि से जोड़ने की जीवन पण्राली स्थापित की गई थी वहां तथाकथित सोशल नेटवर्किंग दैत्य के रूप में उस पण्राली को ही नष्ट कर रहा है। पूरा न्यू मीडिया अपने-आपमें न सकारात्मक चरित्र का है और न सही दिशा में गमन के लिए प्रेरित करने वाला साधन, बल्कि अपनी उत्पत्ति और संस्कार दोनों में यह उसके विपरीत ले जाने वाला है। ब्लॉग, फेसबुक, ट्वीटर, मोबाइल संदेश, यू ट्यूब आदि को नियंत्रित या संतुलित करने की कोशिश सफल नहीं हो सकती। दैत्य की तरह इसका अंत करना होगा। किंतु मरने तक यह मानवीय सभ्यता के न जाने कितने पहलुओं को नष्ट कर अराजकताओं का जाल खड़ा कर चुका होगा।

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