फेसबुक ट्विटर या यूट्यूब से ई मेल तक पूरी वेब दुनिया पर शिकंजा कसने में सरकार को जरा भी देर नहीं लगेगी। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की पहचान ही नहीं बल्कि वेब पर संवाद सामग्री (कंटेंट) पर भी पैनी नजर रखी जा रही है। एक-एक क्लिक, एक-एक सर्च, अपडेट, चैट और मेल को कोई देख रहा है। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट की मंजूरी के बाद देश में इंटरनेट मॉनीटरिंग की सबसे बड़ी परियोजना पर अमल शुरू हो गया है। इस अभियान में खुफिया एजेंसियों का पूरा दस्ता लगा है। स्थलीय नेटवर्क से लेकर उपग्रह और समुद्री केबल तक सभी जगह इंटरनेट ट्रैफिक मॉनीटरिंग प्रणाली लगाई जा रही है। देश में अलग-अलग जगहों पर करीब 53 मॉनीटरिंग मॉड्यूल स्थापित हो चुके हैं। उन्हें इनक्रिप्टेड (कूट) संदेश खोलने और कंटेंट को जांचने के एक केंद्रीय तंत्र से जोड़ा जा रहा है। लगभग 450 करोड़ रुपये के इस अभियान की तकनीकी कमान एनटीआरओ के हाथ है। खुफिया ब्यूरो (आइबी), राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए), मिलिट्री इंटेलीजेंस (एमआइ), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), दूरसंचार विभाग, सी-डॉट, सूचना तकनीक विभाग, टेलीकॉम इंजीनियरिंग सेंटर (टीईसी) इन मॉनीटरिंग प्रणालियों का संचालन करेंगे। आतंकी खतरों, साइबर सुरक्षा और गोपनीयता की जरूरतों के चलते इंटरनेट मॉनीटरिंग का अभियान गजब की तेजी के साथ तैयार हुआ है। इसके लिए खुफिया एजेंसियों, रक्षा और गृह मंत्रालय और एडवांस कंप्यूटिंग संस्थानों के बीच पिछले छह माह में कई बैठकें हुईं। एनटीआरओ पूरे अभियान का सूत्रधार है, जिसे करीब 20 करोड़ रुपये का शुरुआती बजट दिया गया है। पूरे अभियान में अहम पहलू उस अकूत कंटेंट की निगरानी है जो चैट, मेल, सोशल मीडिया, फोटो के जरिए वेब में तैरता है। इसके लिए विशेष तकनीक का इस्तेमाल होगा। इसके लिए सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एंड रोबोटिक्स (केयर) भी मदद दे रहा है। एनटीआरओ ने जल (समुद्री केबल), थल (स्थलीय इंटरनेट गेटवे) और आकाश (उपग्रह इनमारसेट) के लिए अलग मॉनीटरिंग मॉड्यूल तैयार किए हैं। इंटरनेट निगहबानी के लिए एक केंद्रीय मॉनीटरिंग सिस्टम के साथ एक टेलीकॉम टेस्टिंग एंड सिक्यूरिटी प्रमाणन केंद्र भी होगा जो दूरसंचार नेटवर्क में लगने वाले उपकरणों को सुरक्षा स्वीकृति देगा।
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