धन और हैसियत के दिखावे के मामले में नए मध्य वर्ग में व्यापक एका नजर आती है। यहां धर्म-भेद, जाति-भेद नहीं नजर आते। सीरियलित और विज्ञापित दृश्य में और साक्षात जिंदगी के दृश्य में कोई फर्क नहंीं रह गया है। आप ही नायक! आप ही गाहक!! आप ही भोग! आप ही उपभोग!! इस तरह 'मध्यवर्ग ही मध्यवर्ग का भोजन' हो रहा है. इसे अंग्रेजी में 'सेल्फ कंजप्शन' कहा जा सकता है। हिंदी में इस पद का अनुवाद 'आत्मोपभोग' हो सकता है। हमारा मीडिया मध्यवर्ग के दुश्चक्र से मुक्त नहीं हो पा रहा है! मीडिया को अगर आगे विकास करना है तो इस 'आत्मोपभोग' के कुचक्र से बाहर निकलना होगा
उच्च मध्यवर्ग ने टीवी का 'सम्पूर्ण टेक ओवर' कर लिया है! यह एक सरल- सहज सी घटना है जिसको अलग से या फिर से कहना 'सत्य का दुहराव' कहा जा सकता है। इसे यों भी कहा जा सकता है कि नए टीवी ने नए मध्यवर्ग का पूरा अधिग्रहण कर लिया है। हड़प-गड़प लिया है। यह बात इन दिनों जितनी महसूस होती है पहले नहीं हुई। यह लेखक पिछले पच्चीस से अधिक बरसों से टीवी की नियमित समीक्षा करते हुए अचानक पाता है कि इन दिनों दृश्यमान मध्य वर्ग एक दम बदल गया है। उसकी जितने भी प्रकार की छवियों दिखलाई पड़ती हैं उनमें वह बुरी तरह आत्मकेंद्रित, लालची, पैसाखोर, चमकीला और हर दम दनदनाता हुआ दिखता है। पिछली सदी के सन नब्बे से पहले के मध्यवर्ग में एक प्रकार का 'ब्लेक व्हाइटपना' था। कुछ मटमैला सा कुछ काम करता, नौकर ढूंढता, भागता-दौड़ता नजर आता था। पूरी तरह भाग्याधीन न रहकर मेहनत से अपनी हैसियत में सुधार,परिवार की जिम्मेदारी और न्याय-अन्याय के कुछ परम्परागत मानकों की परवाह कुछ लाज लिहाज नजर आता था। निर्लज्जता, जिददीपन और बदलाखोरी खलनायक के खाते में जाती थी। नायक-खलनायक के बीच एक लक्ष्मण रेखा बनी रहती थी। अब वह रेखा मिट चली है। नायकत्व या खलनायकत्व का भेद मिट गया है। जिस तरह की छवियां इन दिनों अरबों-खरबों के स्कैमों-स्केंडलों की कहानियों के बीच नजर आती हैं वे अति स्वस्थ, अति ताकतवर और किसी भी किस्म के पश्चाताप से मुक्त नजर आती हैं। खबरों में हर जगह ताकतवर आकर बैठे रहते हैं। वे ही खबर के उत्स होते हैं। उसके स्वामी होते हैं। उसके व्याख्याकार होते हैं और वे ही उस खबर में जताई गई समस्याओं का समाधान भी सुझाते हैं। दिया हुआ रोग उनका। निदान उनका और दवाई भी उनकी! गजब का चक्र है। उदाहरणों की कमी नहीं है। एक शाम नहीं, दूसरी शाम तक प्रमुख समय में दुनिया के दो बड़े धन्ना सेठ इस देश के दर्शकों को बताने लगे कि दान का महत्त्व समझिए। वे स्वयं महादानी हैं। अकूत कमाई की है और अब आपको बताने आए हैं कि दान करना चाहिए। यहां के सेठों को दान भाव सीखना चाहिए। दान करना चाहिए तो दान का तरीका आना चाहिए। दान का तरीका हमारा है। दान में भी हमारी प्राथमिकताएं हैं। हमने दान किया है तो दान का एजेंडा पहले ही बना दिया है। हम सरकारों को दान देते हैं। एनजीओ को दान देते हैं। इसके लिए हम अपने एजेंडे को संग देते हैं। इसके फॉलोअप में मीडिया में सर्वत्र समझाया जाने लगा कि हिंदुस्तान के सेठों को दानशील होना चाहिए। दो अमेरिकन धन्ना सेठों की दानलीला की पुण्यकथा का श्रवण-कीर्तन अर्चन दो नामी अंग्रेजी पत्रकारों ने किया। एक ऐसा सवाल न हुआ जो पूछ सकता कि हे दानवीर महोदय ! ई मनी कइसे और कहां से कमाई? एक ने स्टाक मारकेट से कमाई। एक ने साइबरी क्रांति से कमाई। इनके रहते अमेरिकन इकनामी डूबी तो डूबी क्यों?आप अपना दान अपने देश की गरीबी को दूर करने के लिए क्यों नहीं लगाते? यह संसार का सबसे धनाढ्य तबका था, जो नए धनाढ्य तबके से ही मुखातिब था। सीधे टीवी पर आकर बैठ गया था और खुश था कि देखो इस मुल्क को भी उपदेश देने आना पड़ा है। इसकी चरचा में एड्स की चपेट में आए लोग ज्यादा थे। टीवी की चपेट में आ रहे लोग कम थे! यह मध्यवर्ग नया बिजनेस मध्यवर्ग था जो बिजनेस घरानों को नसीहत दे रहा था जबकि ओबामा कुछ दिन पहले ही कटोरा लेकर साठ हजार नौकरी का दान इसी 'गरीब सरकार' से लेकर गए थे!
बहरहाल, मध्यवर्ग के बाजार में अगले दिन ही उछाल आ गया था। यह नए मध्यवर्ग द्वारा दी गई दानवीरों की खुशखबरी का असर था या क्या कि मारकेट उछाल पर आ गया था। इधर उवाचा, उधर जापान के सुनामी संकट के बाद डूबा बाजार उछला! आत्मोपभोग की इससे बेहतर मिसाल क्या हो सकती है। नया मध्य वर्ग बड़े लोगों का मध्य वर्ग है। इसकी मिसाल संसदीय कवरेज में नजर आती है। हर दल हर सांसद सिर्फ अपनी कंस्ट्ट्वेिंसी को सम्बोधित करता नजर आता है। अपने संकीर्ण दायरे से बाहर नहीं देखता। यह राजनीति का आत्मोपभोग है। मनोरंजन के क्षेत्र में आत्मोपभोग की अखंड लीला चल रही है। इन दिनों टीवी पर मध्य वर्ग समग्रत: बिराज गया है। एक सीरियल याद करें जो तीन करोड़ की शादी कराता है। शादी दिखाता है। लोग उसे देख शादी सीधे प्रसारित करने पर आमादा हैं। 10-15 साल पहले रिसेप्शन पर बड़ी स्क्रीन लगाकर कवरेज का तरीका अपनाया गया। फिर स्थानीय केबल के जरिए स्थानीय शादी का कवरेज कराया जाने लगा और अब कुछ चैनल मनोरंजन के नाम पर किसी नए धनपति की शादी को लाइव कवर करने को लालायित रहते हैं। धन और हैसियत के दिखावे के मामले में नए मध्य वर्ग में व्यापक एका नजर आती है। यहां धर्म-भेद,जाति-भेद नहंीं नजर आते। एक नेता ने दिल्ली में अपनी संतान की शादी में सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च कर दिए। इसकी खबर अंग्रेजी के अखबारों और कुछ चैनलों ने दी। नए हिंदू धनपति की विनम्रता तो देखिए कि उसने शादी में मीडिया की घुसपैठ की 'शिकायत' भी मीडिया से की! अब तक पश्चिमी यूपी के किसान परिवारों के दूल्हे हेलीकॉप्टर पर शादी करने पहुंचते थ।े दिल्ली वाली शादी में दूल्हे को हेलीकॉप्टर दहेज में दिया गया! मेरठ जनपद से एक खबर आई है कि एक मुस्लिम परिवार की शादी में हर बराती को एक-एक मोटरसाइकिल दी गई और वर पक्ष को पांच किलो सोना दहेज में दिया गया!
लगता है कि सीरियलित और विज्ञापित दृश्य में और साक्षात जिंदगी के दृश्य में कोई फर्क नहंीं रह गया है। आप ही नायक! आप ही गाहक!! आप ही भोग! आप ही उपभोग!! इस तरह 'मध्यवर्ग ही मध्यवर्ग का भोजन' हो रहा है. इसे अंग्रेजी में 'सेल्फ कंजप्शन' कहा जा सकता है। हिंदी में इस पद का अनुवाद 'आत्मोपभोग' हो सकता है। हमारा मीडिया मध्यवर्ग के दुश्चक्र से मुक्त नहीं हो पा रहा है! अब 'आम आदमी' या 'आम जनता' शब्द कम सुनाई पड़ते हैं!
मीडिया को अगर आगे विकास करना है तो इस 'आत्मोपभोग' के कुचक्र से बाहर निकलना होगा!
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