फ्लैप लेखन के अपने फॉर्मूले होते हैं। अगर कोई इन फॉर्मूलों को साध ले, तो शानदार फ्लैप लेखक हो सकता है। मगर सवाल यही है कि आखिर वो फॉर्मूले क्या होते हैं?
हे फ्लैप लेखक बनने की आकांक्षा पालनेवालों! आपकी सेवा में ये फॉर्मूले पेश हैं। वैसे तो अमूमन फ्लैप-लेखक वरिष्ठ और चुके हुए लेखक बनते हैं। परंतु युवा या प्रौढ़ वय के लेखकों को भी ये फॉर्मूले सीखने में कोई हर्ज नहीं है। एक तो आज जो प्रौढ़ उम्र के लेखक हैं, वे जल्दी ही वरिष्ठ लेखक होने वाले हैं। दूसरे जो आज के युवा लेखक हैं वे भी कल नहीं तो परसों के वरिष्ठ लेखक होने वाले हैं। अगर ऐसे लेखक इस फॉर्मूले को जल्दी सीख लें, तो भविष्य में काम आएंगे। पहले से सीखा हुआ हुनर गाढ़े वक्त में काम आता है। ये भी हो सकता है कि जिस तेजी से जमाना बदल रहा है उसकी वजह से ये भी हो जाए कि फ्लैप लेखन का काम युवा और प्रौढ़वय के लेखकों को भी मिलने लगे। आखिर किताबें पहले से ज्यादा छप रही हैं। ऐसे में वरिष्ठ लेखक भी अपने कंधे पर कितना बोझ उठा पाएंगे।
हां, तो फॉर्मूला नंबर वन यानी एक। वो यह है कि आप जिसकी किताब पर लिख रहे हैं, उसे अपनी विधा का विशिष्ट व्यक्ति बताइए। शुरुआत कुछ-कुछ इस तरह होनी चाहिए-श्री क की कविताओं में एक अलग तरह का भावबोध दिखाई पड़ता है। ये कविताएं जटिलता को बड़ी सहजता के प्रेषित करती हैं, क्योंकि कवि का भाषा पर विलक्षण अधिकार है। इन कविताओं में जीवन का मर्म शिद्दत से उद्घाटित हुआ है। इन कविताओं का शिल्प निरायास होने का बोध कराता है, लेकिन कविता के गुनग्राही पाठक जानते हैं कि निरायास सा दीखने वाला शिल्प बड़े श्रम के बाद ही सधता है।
आप ये जान लीजिए कि हर कवि चाहता है, उसकी कविताओं के बारे में ये कहा जाए कि उसमें जीवन का मर्म है। उसे अपना विलक्षण कवि कहलाना भी अच्छा लगता है। कविता की किताब का फ्लैप-लेखन साधने के लिए कुछ शब्दों को बार-बार किस तरह संवारा जाए, ये समझना जरूरी है। जैसे जटिलता और सरलता से जुड़े आप कितनी तरह के वाक्य बना सकते हैं इस पर आपकी सफलता की गारंटी निर्भर करती है। हर कवि जटिल और सरल, दोनों होना चाहता है।
कहानियों या कथा साहित्य की पुस्तक के फ्लैप-लेखन का फॉर्मूला थोड़ा अलग है। कविता में जटिलता और सरलता में तालमेल बिठाना पढ़ता है, तो कहानी या उपन्यास के बारे में लिखते समय सामाजिक यथार्थ और और विसंगति में। हर कथाकार चाहता है कि उसकी रचनाओं में लोग सामाजिक यथार्थ को भी देखें और जीवन की विसंगतियों को भी। कथाकार की दूसरी इच्छा प्रेमचंद की परंपरा का होते हुए भी नई जमीन तोड़नेवाला कहलाने की होती है। इसलिए इसका भी खयाल रखें। कुछ कथाकार-कवि भी होते हैं। ऐसे में उसकी कविता पर लिखते समय उसमें कथातत्व और कहानी पर लिखते समय काव्यात्मकता की बात करना न भूलें। वरना वो अगली बार से आपसे फ्लैप नहीं लिखवाएगा। वो सकता है कि लिखवाया हुआ प्लैप ही न छापे और किसी दूसरे से फ्लैप लिखने को कहे। फ्लैप सिर्फ प्रशंसा के लिए लिखे जाते हैं।
अगर किताब साहित्य की आलोचना की हो, तो फ्लैप में इस तरह का वाक्य लिखें- श्री ख की पुस्तक में परंपरा की गहरी जानकारी और समझ है, लेकिन वे आधुनिकता को भी नहीं भूलते। वे आधुनिकता को परंपरा की कसौटी पर जांचते हैं और परंपरा को आधुनिकता के मानदंडों पर परखते हैं। लेखक ने पूर्व और पश्चिम- दोनों की बौद्धिक विरासत को आत्मसात किया है और एक नई राह का संधान किया हैँ।’ हिंदी का हर आलोचक अपने को आधुनिक भी कहलवाना चाहता है और परंपरा का जानकार भी- भले ही वो दोनों में से कुछ भी न जाने। अगर आप इन मोटी-मोटी बातों को ध्यान में रखें, तो सफल प्लैप लेखक बन सकते हैं। असल बात ये है कि प्लैप-लेखन भाषा की जादूगरी है। लेकिन कहीं भी अतिशयोक्तियों से काम मत लीजिए। कवि, कथाकार या आलोचक को विशिष्ट बताइए, लेकिन इस अंदाज से कि तारीफ जरूरत से कम हो रही है। ये भी याद रखिए कि हर समय के साथ कुछ नए-नए जुमले चलन में आते हैं। जैसे आजकल बाजारवाद काफी चलन में है। आप किसी कहानीकार, कवि या आलोचक के बारे में डंके की चोट पर कह सकते हैं कि उसकी रचना बाजारवाद के खिलाफ है। फ्लैप में इस तरह की बात सबको अच्छी लगेगी। पर ये हो सकता है दस साल बाद ये जुमला काम में न आए। हर वक्त के अपने चालू जुमले होते हैं।
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