अदालती कार्यवाही की रिपोर्टिग के लिए दिशा-निर्देश तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को कहा कि यह मामला संवैधानिक प्रावधानों के तहत पत्रकारों की सीमाओं को स्पष्ट करने से संबंधित है। केंद्र ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि न्यायिक कार्यवाहियों पर रिपोर्टिग को नियमित करने को लेकर उच्चतम न्यायालय पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है। मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हम चाहते हैं कि पत्रकार अपनी सीमाओं को जाने। मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति डीके जैन, न्यायमूर्ति एसएस निज्जर, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश और न्यायमूर्ति जेएस खेहर शामिल हैं। कोर्ट ने उन आशंकाओं को भी दूर करने की कोशिश की कि अदालती कार्यवाही की मीडिया कवरेज पर दिशा-निर्देशों में कठोर प्रावधान होंगे। पीठ ने कहा, हम इस पक्ष में नहीं हैं कि पत्रकार जेल जाएं। मीडिया कवरेज पर दिशा-निर्देश इसलिए तय करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत प्रेस को प्रदत्त अधिकार और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) को संतुलित किया जा सके। सुप्रीमकोर्ट की हिमायत करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने उन दलीलों का विरोध किया कि दिशा-निर्देश तय कर मीडिया की सीमाएं तय नहीं की जा सकतीं। उन्होंने कहा अनुच्छेद 21 को 19 पर आवश्यक रूप से तरजीह मिलना चाहिए। इंदिरा ने कहा, इसलिए अदालत के समक्ष पेश की गई यह दलील गलत है कि अनुच्छेद 19 (1)(क) के तहत प्रदत्त अधिकार पर अनुच्छेद 19 (2) के तहत विहित रोक के अलावा कोई अन्य रोक नहीं लगाई जा सकती, यह तर्क संवैधानिक व्याख्या के मूलभूत सिद्धांतों को नजरअंदाज करती है।इंदिरा जय सिंह ने कहा कि न्यायिक कार्यवाहियों की रिपोर्टिग को नियमित करने की जरूरत है, लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि मीडिया रिपोर्टिग भी न्याय प्रशासन में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने में योगदान करती है। उन्होंने कहा कि रिपोर्टिग को त्रुटि मुक्त बनाने के लिए अदालत को कार्यवाही का आलेख पत्रकारों को देने का प्रयास करना चाहिए। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सामान्य विधि के तहत कोर्ट की कार्यवाही को प्रकाशित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट या अन्य अदालतों में पत्रकारों के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं है।
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