महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविालय, वर्धा के जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित मीडिया संवाद कार्यक्रम में वर्तमान संदर्भ में गांधीजी की पत्रकारिता की प्रासंगिकता विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गिरिराज किशोर ने कहा कि गांधीजी ने पत्रकारिता को परिवर्तन का हथियार बनाया था। जब वे दक्षिण अफ्रीका गए तो उन्होंने देखा कि गिरमिटिया के अनुबंध पर गए भारतीय मजदूरों के साथ वहां के शासक शोषण व अत्याचार करते हैं। उन्होंने वहां चार भाषाओं-तमिल, हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी में इंडियन ओपीनियन नामक पत्र निकाला। अंग्रेज प्रतीक्षा करते थे कि गांधीजी की पत्रिका कब आएगी, उसमें गांधीजी ने क्या कहा, राजनीति के बारे में उनकी क्या योजना है। गांधीजी अपने पत्र में सामयिक, राजनीतिक व सरकार की नीतियों पर छोटी-छोटी टिप्पणियां लिखा करते थे। गांधीजी अखबार को परिवर्तन का माध्यम मानते हुए जनचेतना की बात को स्थान देते थे। उनके पत्र की प्रभावकारी भूमिका के कारण दक्षिण अफ्रीका की सरकार डरती थी। गिरिराज किशोर ने बताया कि जनरल स्पट्स ने एक बार गांधीजी को बुलाकर कहा कि तुम अगर पत्र बंद करते हो तो आप जो मांगेंगे- दूंगा। प्रतिउत्तर में गांधी ने कहा कि अगर मैं तुम्हें कहूं कि तुम अपनी जुबान बंद रखो तो क्या ये मुमकिन होगा। गिरिराज किशोर ने गांधीजी को सबसे बड़े सम्प्रेषक बताते हुए चार्ली चैपलिन और गांधीजी के बीच हुए संवाद का जिक्र किया। चैपलिन जब गांधीजी से मिलने गए तो उन्होंने कहा कि मुझसे मिलकर क्या करोगे, न तुम मुझे सिखा सकते हो और न मैं तुम्हें। चैपलिन तुम्हारा संवाद सबसे अधिक लोगों से है तो चैपलिन ने उत्तर दिया कि गांधीजी आप सबसे बड़े कम्यूनिकेटर हो।
गिरिराज किशोर ने कहा कि गांधीजी संवाद को ऐसे सम्प्रेषित करते थे कि आप सोचने को विवश हों कि आप पर किस प्रकार से शोषण व जुर्म हो रहा है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर सरला एक्ट लगाए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि यह कैसी विडंबना थी कि जिनके पास शादी का सर्टिफिकेट नहीं होगा, उनकी शादी वैध नहीं होगी। भारतीयों के पास शादी का प्रमाण पत्र न होने के कारण अधिकतर स्त्री-पुरुष पति-पत्नी के संबंधों से वंचित हो जाते, इस बात पर गांधीजी ने कस्तूरबा को कहा कि आज से आप मेरी पत्नी नहीं और ये बच्चे मेरे नहीं, क्योंकि हमारे पास शादी का प्रमाण पत्र नहीं है। इस बात को सुनकर कस्तूरबा काफी चिंतित हो गईं और उन्होंने सरला एक्ट हटाने के लिए आंदोलन किया। कस्तूरबा विश्व की पहली महिला हैं, जिन्होंने विदेशी धरती पर अपनी लड़ाई जीती।
अध्यक्षीय वक्तव्य में विश्वविालय के प्रतिकुलपति व वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि गांधी और टैगोर के बीच हुए पत्राचार पर एनबीटी ने पुस्तक प्रकाशित की है। हम परियोजना बनाकर यह प्रयास करें कि गांधीजी के व्यक्तित्व के अलग-अलग पक्षों पर कैसे अनुसंधान हो सके, ताकि दुनिया को पता चल सके कि महात्मा गांधी के नाम पर स्थापित विश्वविालय में उनके न सिर्फ जीवन आदर्शो व दर्शन पर काम हुआ है। कवि आलोक धन्वा ने लोकतंत्र के लिए दूसरों के संवाद सुनने और उनकी संवेदना से जुड़ने की जरूरत का जिक्र करते हुए गांधीजी के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी हमारी रातों में आते थे। बाजारवाद के प्रभावों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज ऐसा बाजार आया है, जो हमें ज्ञान से अज्ञान की ओर ले जा रहा है। हम यह देखें कि क्या कारण है कि पूरी दुनिया गांधी की ओर झुक रही है, यह जानकर कि बाजार विजयी होगा। आखिर इसी बाजारवाद के खतरे से तंग आकर टॉल्सटाय ने मैक्सिम गोर्की से झगड़कर आखिरी तार दिया था। आभार व्यक्त करते हुए जनसंचार के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल के. राय अंकित ने कहा कि गांधीजी ने परिवर्तन के लिए पत्रकारिता को हथियार बनाया था। हमारा यह प्रयास रहेगा कि गांधीयन दर्शन से जोड़कर हम नई पीढ़ी के पत्रकार तैयार करें, जिससे वे आज के बाजारीय प्रणाली में मानवीय जीवन मूल्यों को समझकर पत्रकारिता कर सकें।
गिरिराज किशोर ने कहा कि गांधीजी संवाद को ऐसे सम्प्रेषित करते थे कि आप सोचने को विवश हों कि आप पर किस प्रकार से शोषण व जुर्म हो रहा है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर सरला एक्ट लगाए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि यह कैसी विडंबना थी कि जिनके पास शादी का सर्टिफिकेट नहीं होगा, उनकी शादी वैध नहीं होगी। भारतीयों के पास शादी का प्रमाण पत्र न होने के कारण अधिकतर स्त्री-पुरुष पति-पत्नी के संबंधों से वंचित हो जाते, इस बात पर गांधीजी ने कस्तूरबा को कहा कि आज से आप मेरी पत्नी नहीं और ये बच्चे मेरे नहीं, क्योंकि हमारे पास शादी का प्रमाण पत्र नहीं है। इस बात को सुनकर कस्तूरबा काफी चिंतित हो गईं और उन्होंने सरला एक्ट हटाने के लिए आंदोलन किया। कस्तूरबा विश्व की पहली महिला हैं, जिन्होंने विदेशी धरती पर अपनी लड़ाई जीती।
अध्यक्षीय वक्तव्य में विश्वविालय के प्रतिकुलपति व वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि गांधी और टैगोर के बीच हुए पत्राचार पर एनबीटी ने पुस्तक प्रकाशित की है। हम परियोजना बनाकर यह प्रयास करें कि गांधीजी के व्यक्तित्व के अलग-अलग पक्षों पर कैसे अनुसंधान हो सके, ताकि दुनिया को पता चल सके कि महात्मा गांधी के नाम पर स्थापित विश्वविालय में उनके न सिर्फ जीवन आदर्शो व दर्शन पर काम हुआ है। कवि आलोक धन्वा ने लोकतंत्र के लिए दूसरों के संवाद सुनने और उनकी संवेदना से जुड़ने की जरूरत का जिक्र करते हुए गांधीजी के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधी हमारी रातों में आते थे। बाजारवाद के प्रभावों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज ऐसा बाजार आया है, जो हमें ज्ञान से अज्ञान की ओर ले जा रहा है। हम यह देखें कि क्या कारण है कि पूरी दुनिया गांधी की ओर झुक रही है, यह जानकर कि बाजार विजयी होगा। आखिर इसी बाजारवाद के खतरे से तंग आकर टॉल्सटाय ने मैक्सिम गोर्की से झगड़कर आखिरी तार दिया था। आभार व्यक्त करते हुए जनसंचार के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल के. राय अंकित ने कहा कि गांधीजी ने परिवर्तन के लिए पत्रकारिता को हथियार बनाया था। हमारा यह प्रयास रहेगा कि गांधीयन दर्शन से जोड़कर हम नई पीढ़ी के पत्रकार तैयार करें, जिससे वे आज के बाजारीय प्रणाली में मानवीय जीवन मूल्यों को समझकर पत्रकारिता कर सकें।
aaj media ka galat upyog bhi dekh ki pragati me bohot bada badhak hai... ummid karti hu shighra ise sahi desha mile :)
ReplyDeleteब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत,
ReplyDeleteउत्तरप्रदेश ब्लोगेर असोसिएसन
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इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|
ReplyDeleteअनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -
वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!
शुभाकॉंक्षी|
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
(देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
मोबाइल : 098285-02666
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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