Friday, February 11, 2011

मीडिया को रोकने की समीक्षा होगी?


मीडिया में रोज आ रहे घोटालों से संबंधी सनसनी खेज खुलासों से परेशान यूपीए सरकार के मंत्रियों ने मीडिया के अधिकारों और स्वतंत्रता की समीक्षा करने की मांग कर डाली है। मंत्रियों का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है लेकिन अब मीडिया व्यावसायिक हो गया है तो क्या उनके लिए स्वतंत्रता का अधिकार जारी रखना चाहिए। मंत्रियों ने सरकार को भंवर निकालने के लिए फिर से गेंद एनडीए के पाले में डालने के लिए एस-बैंड आबंटन की जांच 2003 से कराने की मांग की। उनके मन में सवाल था कि आखिर यह विचार उस वक्त एनडीए के दिमाग में कैसे आया। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को इस बात का एहसास नहीं रहा होगा कि उनके कैबिनेट से साथ एक साथ उन पर सवालों की झड़ी लगा देंगे। सवाल भी बहुत तीखे थे। जैसे समझौता क्यों किया गया, जब समझौता रद्द करने का फैसला हुआ तो उसपर अब तक अमल क्यों किया। और साथ में 2003 में एनडीए सरकार ने ऐसा समझौता करने का विचार क्यों किया। बृहस्पतिवार की कैबिनेट की खास बात यह थी कि आज केवल कांग्रेस कोटे के मंत्री बैठक में मौजूद थे। घटक दलों ने मंत्री शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, अजागिरी, ममता बनर्जी, फारूख अब्दुल्ला, दयानिधि मारन में से कोई भी उपस्थित नहीं था। इसलिए यह बैठक कैबिनेट से ज्यादा कांग्रेस कोर कमेटी जैसी होगी। केवल कांग्रेसी मंत्री होने के कारण मंत्रियों ने खुलकर प्रधानंमत्री से सवाल किये। प्रधानंमत्री ने भी सबको पूछने का मौका दिया। लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि आज गठित उच्चाधिकार कमेटी एक महीने में रिपोर्ट देगी तब र्चचा कर लेंगे। लेकिन आज पूछे गए तीखे सवालों में थे-यह सौदा क्यों किया गया। क्या इससे जनता को फायदा होता, या किसी व्यक्ति को। सौदा करने वाले अंतरिक्ष विभाग के लोग ही क्यों थे। पांच साल बाद जब समझौते की समीक्षा की गई और समझौता रद्द करने का फैसला जुलाई 2010 में लिया गया था तो अभी तक रद्द क्यों नहीं किया गया। सबसे ज्यादा सवाल कपिल सिब्बल और व्यालार रवि ने पूछे। आज की बैठक में मीडिया को काबू करने पर भी सवाल उठे। एक मंत्री का कहना था अब तो सूचना का अधिकार कानून बन गया है तो संविधान की धारा 19 (1) (ए) की समीक्षा की जानी चाहिए क्यों कि मीडिया अब व्यवसाय हो गया तो उसे छुट्टा घूमने की अनुमति क्यों दी जाए। बहरहाल इस प्रश्न पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। 
लेकिन शुरुआत तो हो गई : मीडिया को काबू करने की शुरुआत तो हो गई है। आज कैबिनेट में प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण कानून 1867 में व्यापक संशोधन संशोधन करने का फैसला किया है। इस संशोधन में पेनाल्टी का प्रावधान जोड़ा जोड़ा गया है। जिसके अनुसार गड़बड़ करने पर अखबार का प्रकाशन एक महीने से लेकर दो महीने और पंजीकरण रद्द करने का प्रावधान है। आईएनएस के अध्यक्ष कुंदन आर व्यास ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी से आग्रह किया है कि इस प्रावधान को हटाया जाए। 
समझौता रद्द करने पर कितना हर्जाना देना होगा : देबास कंपनी के साथ किये गए समझौते को रद्द करने पर सरकार को कितना नुकसान उठाना पड़ेगा, इस बात की जानकारी भी दो सदस्यीय कमेटी देगी। देबास से समझौता ऐसे ही रद्द नहीं किया जा सकता।


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