Friday, September 14, 2012

लक्ष्मण रेखा याद रखे मीडिया



, नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को अवमानना से बचने के लिए लक्ष्मण रेखा न लांघने की नसीहत देते हुए अदालतों में लंबित मामलों की रिपोर्टिग के बारे में एकमुश्त दिशानिर्देश तय करने से मना कर दिया। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि कोर्ट रिपोर्टिग के बारे में एक से दिशानिर्देश तय करना संभव नहीं है। कोर्ट ने भारत में भ्रष्टाचार और सरकारी खामियों को उजागर करने में मीडिया की भूमिका को महत्वपूर्ण माना और कहा कि अदालतें रिपोर्टिग टालने का आदेश पारित करते समय मीडिया की भूमिका का ध्यान रखें। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडि़या, जस्टिस डीके जैन, एसएस निज्जर, रंजना प्रकाश देसाई और जेएस खेहर की पांच सदस्यीय पीठ ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट व बाजार नियामक सेबी की अर्जियों का निपटारा करते हुए सुनाया है। सहारा और सेबी ने प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की रिपोर्टिग के बारे में दिशा निर्देश तय करने की मांग की थी। लेकिन, कोर्ट ने एक मुश्त दिशा निर्देश तय करने से मना करते हुए कहा कि पीडि़त पक्ष या अभियुक्त निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार की दुहाई देकर रिपोर्टिग पर कुछ समय रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है। कोर्ट उस याचिका पर सभी पक्षों को सुनकर अगर तर्क संगत पाती है तो कुछ समय के लिए रिपोर्टिग टालने का आदेश दे सकती है। इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं माना जा सकता। प्रेस की स्वतंत्रता और न्यायिक प्रशासन के बीच संतुलन का जिक्र करते हुए संविधान पीठ ने कहा कि किसी भी न्यायिक प्रणाली में इन दोनों के बीच संतुलन बनाना मुश्किल काम है। दुनिया भर में अदालती रिपोर्टिग के बारे में लागू कानूनों की बात करते हुए कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता शामिल है और इसमें सूचना का अधिकार भी आता है, लेकिन संविधान के भाग तीन में दिया गया कोई भी अधिकार (मौलिक अधिकार) पूर्ण (एब्सोल्यूट) नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी पूर्ण नहीं है। सभी अधिकार एक दूसरे के अधीन हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और निष्पक्ष व स्वतंत्र सुनवाई के अधिकार के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए। खुली अदालत में सुनवाई का सिद्धांत भी पूर्ण नहीं है। इसके भी अपवाद हैं। कोर्ट इन-कैमरा सुनवाई का आदेश दे सकती है। न्यायिक प्रशासन बनाए रखने के लिए दिए गए रोक के आदेश को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि कुछ समय के लिए रिपोर्टिग या प्रकाशन टालने का आदेश दंडात्मक नहीं, बल्कि निरोधक उपाय है। अदालतों को न्यायिक प्रशासन व अभियुक्त को मिले निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के बीच संतुलन के लिए ऐसा आदेश जारी करने का अधिकार है, लेकिन यह तर्कसंगत होना चाहिए।

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